हरिस्वामी की कथा - किये गये कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है

वैतालने पुन: कहा – राजन ! चुडापुर नामक एक रमणीय नगर में चूड़ामणि नामका एक राजा राज्य करता था | उसकी विशालाक्षी नामकी पतिव्रता पत्नी थी | रानी ने पुत्र की कामनासे भगवान् शंकर की आराधना की | उनकी कृपासे उसे कामदेव के समान एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ, जो देवताओं के अंश से सम्भूत था | उसका नाम रखा गया हरिस्वामी | सभी सम्पतियों से समन्वित वह हरिस्वामी पृथ्वीपर देवताके समान सुख भोगने लगा | देवलमुनि के शाप से एक देवांगना मानुषीरूप में रूपलावण्यि का नामसे उत्पन्न होकर राजकुमार हरिस्वामी की पत्नी हुई | एक समय वह सुन्दरी अपने प्रासाद में आनंदपूर्वक शय्यापर शयन कर रही थी | उसीसमय सुकल नामका एक गंधर्व आया और उसने प्रगाढ़ निद्रा में निमग्न उस रानी का अपहरण कर लिया | जब हरिस्वामी उठा, तब अपनी पत्नी को न देखकर उसे ढूंढने लगा | उसके न मिलनेपर वह व्याकुल हो गया और नगर छोडकर वनमें चला गया तथा सभी विषयों का परित्याग कर एकमात्र भगवान् श्रीहरि के ध्यान में लीन हो गया और भिक्षावृत्ति का आश्रय ग्रहणकर संन्यासी हो गया |
एक दिन वह संन्यासी (राजा हरिस्वामी) भिक्षा माँगने के लिये एक ब्राह्मण के घर आया और ब्राह्मण ने प्रसन्नतापूर्वक खीर बनाकर उसको दी | खीर का पात्र लेकर वह वहाँ से स्नान करने चला आया | खीर का पात्र उसने वटवृक्षपर रख दिया और स्वयं नदी में स्नान करने लगा | उसी समय कहींसे एक सर्प आया और उसने उस खीर में अपने मुँह से विष उगल दिया | जब सन्यासी हरिस्वामी स्नान से आकर खीर खाने लगा तो विष के प्रभाव से वह बेहोश होने लगा और उस ब्राह्मण के पास आकर कहने लगा – ‘अरे दुष्ट ब्राह्मण ! तुम्हारे द्वारा दिये गये विषमय खीर को खाकर अब मैं मर रहा हूँ | इसलिए तुम्हें ब्रह्महत्या का पाप लगेगा |’ यह कहकर वह संन्यासी मर गया और उसने अपनी तपस्या के प्रभाव से शिवलोक को प्राप्त किया |
वैताल ने राजासे पूछा – राजन ! इनमें ब्रह्महत्या का पाप किसको लगेगा ? यह मुझे बताओ |
राजाने कहा – विषधर नागने अज्ञानवश स्वभावत: उस पायस को विषमय कर दिया, अत: ब्रह्महत्या का पाप उसे नहीं होगा |
चूँकि संन्यासी बुभुक्षित था और भिक्षा माँगने ब्राह्मण के घर आया था, ब्राह्मण के लिये वह अतिथि देव-स्वरुप था | अत: अतिथिधर्म का पालन करना उसके कुल-धर्म के अनुकूल ही था | उसने श्रध्दासे खीर बनाकर संन्यासी को निवेदित किया; ऐसे में वह कैसे ब्रह्महत्या का भागी बन सकता है ? यदि वह विष मिलाकर अन्न देता, तभी ब्रह्महत्या उसे लगती, क्योंकि अतिथिका अपमान भी ब्रह्महत्या के समान ही है | अत: ब्राह्मण को ब्रह्महत्या नहीं लगेगी | शेष बच गया वह संन्यासी | चूँकि अपने किये गये शुभाशुभ कर्मका फल अवश्य भोगना पड़ता है | अत: वह संन्यासी अपने किसी जन्मांतरीय कर्मवश काल की प्रेरणा से स्वत: ही मरा, उसकी मृत्यु स्वाभाविक रूप से ही हुई | इसमें किसी का दोष नहीं | पायस का भोजन करना तो मरने में केवल निमित्तमात्र ही था | अत: उसे भी ब्रह्महत्या नहीं लगेगी | इसप्रकार इन तीनों में किसीको भी ब्रह्महत्या नही लगेगी |