कात्यायन तथा मगध के राजा महानंद की कथा

सूतजी बोले – शौनक ! उज्जयिनी नगरी में एक हिंसापरायण मद्य-मांस-भक्षी भीमवर्मा नामका क्षत्रिय रहता था | वह अतिशय हिंसा एवं अधर्माचरण के कारण भयंकर व्याधियों से ग्रस्त हो गया और युवावस्था में ही उसकी मृत्यु हो गयी | संयोगवश उसने कभी चंडीपाठ भी कराया था | जिसके पुण्य के प्रभाव से इतना निकृष्ट पापी भी नरक में नहीं गया | दुसरे जन्म में वाही राजनीतिपरायण मगध का विख्यात राजा महानंद हुआ और उसे अपने पूर्वजन्म की पूरी स्मृति थी | अतिशय समर्थ बुद्धिमान कात्यायन (वरुचि) का वह शिष्य हुआ | देवी महालक्ष्मी के बीजसहित मध्यम चरित्रका राजा महानंद को उपदेश देकर कात्यायन स्वयं विंध्यपर्वतपर शक्ति-उपासना के लिये चले गये | इधर राजा भी प्रतिदिन महालक्ष्मी की कस्तुरी, चंदन आदिसे पूजा कर श्रीदुर्गासप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करने लगा | बारह वर्ष व्यतीत होनेपर शक्ति की उपासना करनेवाले कात्यायन पुन: अपने शिष्य महानंद के पास आये और उन्होंने राजा से विधिपूर्वक लक्षचण्डीपाठ करवाया | फलस्वरूप सनातनी भगवती महालक्ष्मी प्रकट हुई और राजाको धर्म, अर्थ, कामसहित मोक्ष भी दे दिया | इसप्रकार महाभाग महानंद ने देवों के समान अभीष्ट फलों का उपभोग कर अंत में देवताओं से नमस्कृत हो परम लोक को प्राप्त किया |