श्रीकृष्ण-साम्ब-संवाद तथा भगवान् सूर्यनारायण कि पूजन-विधि

राजा शतानीक ने कहा – ब्राह्मणश्रेष्ठ ! भगवान् सूर्यनारायण का माहात्म्य सुनते-सुनते मुझे तृप्ति नहीं हो रही है, इसलिये सप्तमी-कल्प का आप पुन: कुछ और विस्तार से वर्णन करें |
सुमन्तु मुनि बोले – राजन ! इस विषय में भगवान् श्रीकृष्ण और उनके पुत्र साम्ब का जो परस्पर संवाद हुआ था, उसीका मैं वर्णन करता हूँ, उसे आप सुने |
एक समय साम्ब ने अपने पिता भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा – ‘पिताजी ! मनुष्य संसार में जन्म-ग्रहणकर कौन-सा कर्म करे, जिससे उसे दुःख न हो और मनोवांच्छित फलों को प्राप्त कर वह स्वर्ग प्राप्त करे तथा मुक्ति भी प्राप्त कर सके | इन सबका आप वर्णन करें | मेरा मन इस संसार में अनेक प्रकारकी आधि-व्याधियों को देखकर अत्यंत उदास हो रहा है, मुझे क्षणमात्र भी जीने की इच्छा नहीं होती, अत: आप कृपाकर ऐसा उपाय बताएं कि जितने दिन भी इस संसार में रहा जाय, ये आधि-व्याधियाँ पीड़ित न कर सकें और फिर इस संसार में जन्म न हो अर्थात मोक्ष प्राप्त हो जाय |’
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – वत्स ! देवताओं के प्रसादसे, उनके अनुग्रहसे तथा उनकी आराधना करनेसे यह सब कुछ प्राप्त हो सकता हैं | देवताओं की आराधना ही परम उपाय है | देवता अनुमान और आगम-प्रमाणों से सिद्ध होते हैं | विशिष्ट पुरुष देवताकी आराधना करे तो वह विशिष्ट फल प्राप्त कर सकता हैं |
साम्बने कहा – महाराज ! प्रथम तो देवताओं के अस्तित्वमें ही संदेह है, कुछ लोग कहते हैं देवता हैं और कुछ कहते हैं कि देवता नहीं हैं, फिर विशिष्ट देवता किन्हें समझा जाय ?
भगवान् श्रीकृष्ण बोले – वत्स ! आगमसे, अनुमानसे और प्रत्यक्षसे देवताओं का होना सिद्ध होता हैं |
साम्ब ने कहा – यदि देवता प्रत्यक्ष सिद्ध हो सकते हैं तो फिर उनके साधन के लिये अनुमान और आगम-प्रमाण कि कुछ भी अपेक्षा नहीं है |
श्रीकृष्ण बोले – वत्स ! सभी देवता प्रत्यक्ष नहीं होते | शास्त्र और अनुमानसे ही हजारों देवताओं का होना सिद्ध होता है |

साम्ब ने कहा – पिताजी ! जो देवता प्रत्यक्ष हैं और विशिष्ट एवं अभीष्ट फलों को देनेवाले हैं, पहले आप उन्हीं का वर्णन करें | अनन्तर शास्त्र तथा अनुमानसे सिद्ध होनेवाले देवताओं का वर्णन करें |
श्रीकृष्ण ने कहा – प्रत्यक्ष देवता तो संसार के नेत्रस्वरूप भगवान् सूर्यनारायण ही हैं, इनसे बढकर दूसरा कोई देवता नहीं है | सम्पूर्ण जगत इन्हींसे उत्पन्न हुआ है एयर अंतमे इन्हीं में विलीन भी हो जायगा | प्रत्यक्षे देवता सूर्यो जगश्चक्षुर्दिवाकर: |
तस्माद्भ्यधिका काचिद्देवता नास्ति शाश्वती ||
यस्मादिदं जगज्जातं लयं याश्चति यत्र च |
सत्य आदि युगों और कालकी गणना इन्हीं से सिद्ध होती है | ग्रह, नक्षत्र, योग, करण, राशि, आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अग्नि, अश्विनीकुमार, इंद्र, प्रजापति, दिशाएँ, भू:, भुव:, स्व: – ये सभी लोक और पर्वत, नदी, समुद्र, नाग तथा सम्पूर्ण भूतग्राम की उत्पत्ति के एकमात्र हेतु भगवान् सूर्यनारायण ही हैं | यह सम्पूर्ण चराचर-जगत इनकी ही इच्छासे उत्पन्न हुआ है | इनकी ही इच्छासे स्थित है और सभी इनकी ही इच्छासे अपने-अपने व्यवहार में प्रवृत्त होते हैं | इन्हीं के अनुग्रह से यह सारा संसार प्रयत्नशील दिखायी देता है | सूर्यभगवान् के उदय के साथ जगत का उदय और उनके अस्त होने के साथ जगत अस्त होता है | इनसे अधिक न कोई देवता हुआ और न होगा | वेदादि शास्त्रों तथा इतिहास-पुराणादि में इनका परमात्मा, अंतरात्मा आदि शब्दों से प्रतिपादन किया गया हैं | ये सर्वत्र व्याप्त हैं | इनके सम्पूर्ण गुणों और प्रभावों का वर्णन सौ वर्षों में भी नहीं किया जा सकता | इसीलिये दिवाकर, गुणाकर, सबके स्वामी, सबके स्रष्टा और सबका संहार करनेवाले भी ये ही कहे गये हैं | ये स्वयं अव्यय हैं |
जो पुरुष सूर्य-मंडलकी रचनाकर प्रात: मध्यान्ह और सायं उनकी पूजा क्र उपस्थान करता हैं, वह परमगतिको प्राप्त करता है | फिर जो प्रत्यक्ष सूर्यनारायण का भक्तिपूर्वक पूजन करता हैं, उसके लिये कौन-सा पदार्ध दुर्लभ है और जो अपनी अंतरात्मा में ही मण्डलस्थ भगवान् सूर्य को अपनी बुद्धिद्वारा निश्चित कर लेता है तथा ऐसा समझकर वह इनका ध्यानपूर्वक पूजन, हवन तथा जप करता हैं, वह सभी कामनाओं को प्राप्त करता हैं और अन्तमें इनके लोकको प्राप्त होता है | इसलिये हे पुत्र ! यदि तुम संसार में सुख चाहते हो और भुक्ति तथा मुक्ति की इच्छा रखते हो तो विधिपूर्वक प्रत्यक्ष देवता भगवान् सूर्यकी तन्मयता से आराधना करो |
इससे तुम्हें आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक कोई भी दुःख नहीं होंगे | जो सूर्यभगवान् की शरण में जाते हैं, उनको किसी प्रकार का भी नहीं होता और उन्हें इस लोक तथा परलोक में शाश्वत सुख प्राप्त होता हैं | स्वयं मैंने भगवान् सूर्य की बहुत कालतक यथाविधि आराधना की हैं, उन्हीं की कृपासे यह दिव्य ज्ञान मुझे प्राप्त हुआ है | इससे बढकर मनुष्यों के हितका और कोई उपाय नहीं हैं |