महर्षि पाणिनि का इतिवृत्त

ऋषियों ने पूछा – भगवन ! सभी तीर्थों, दानों आदि धर्मसाधनों में उत्तम साधन क्या है, जिसका आश्रय लेकर मनुष्य क्लेश-सागर को पार कर जाय और मुक्ति प्राप्त कर ले ?
सूतजी बोले – प्राचीन काल में साम के एक श्रेष्ठ पुत्र थे, जिनका नाम पाणिनि था | कणाद के श्रेष्ठ शास्त्रज्ञ शिष्यों से ये पराजित एवं लज्जित होकर तीर्थाटन के लिये चले गये | प्राय: सभी तीर्थों में स्नान तथा देवता-पितरों का तर्पण करते हुए वे केदार-क्षेत्र का जल पानकर भगवान् शिव के ध्यान में तत्पर हो गये | पत्तों के आहारपर रहते हुए वे सप्ताहान्त में जल ग्रहण करते थे | फिर उन्होंने दस दिनतक जल ही ग्रहण किया | बाद में वे दस दिनोंतक केवल वायु के ही आहारपर रहकर भगवान् शिव का ध्यान करते रहे | इसप्रकार जब अठ्ठाईस दिन व्यतीत हो गये तो भगवान् शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा | भगवान् शिव की इस अमृतमय वाणी को सुनकर उन्होंने गदगद वाणी से सर्वेश, सर्वलिंगेश, गिरिजावल्लभ हर की इसप्रकार स्तुति की –
‘महान रुद को नमस्कार है | सर्वेश्वर सर्वहितकारी भगवान् शिव को नमस्कार है | अभी एवं विद्या प्रदान करनेवाले, नंदी वाहन भगवान् को नमस्कार है | पाप का विनाश करनेवाले तथा समस्त लोकों के स्वामी एवं समस्त भगवान शंकर को नमस्कार हैं |
नमो रुद्राय महते सर्वेशाय हितैषिणे | नंदिसंस्थाय देवाय विद्याभयकराय च ||
पापान्तकाय भर्गाय नमोऽनन्ताय वेधसे | नमो मायाहरेशाय नमस्ते लोकशंकर ||
देवेश ! यदि आप प्रसन्न है तो मुझे मूल विद्या एवं परम शास्त्र-ज्ञान प्रदान करने की कृपा करे |
सूतजी बोले – यह सुनकर महादेवजी ने प्रसन्न होकर ‘अ इ उ ण’ आदि मंगलकारी सर्ववर्णमय सूत्रों को उन्हें प्रदान किया | ज्ञानरुपी सरोवर के सत्यरूपी जलसे जो राग-द्वेषरूपी मल का नाश करनेवाला है, उस मानसतीर्थ को प्राप्त करनेपर अर्थात उस मानस तीर्थ में अवगाहन करनेपर सभी तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है | यह महान-ज्ञान-तीर्थ ब्रह्म के साक्षात्कार कराने में समर्थ है | पाणिने ! मैंने यह सर्वोत्तम तीर्थ तुम्हे प्रदान किया हैं, इससे तुम कृतकृत्य हो जाओगे | यह कहकर भगवान रूद्र अन्तर्हित हो गये और पाणिनि अपने घरपर आ गये | पाणिनि ने सूत्रपाठ, धातुपाठ, गणपाठ और लिंगसूत्र-रूप व्याकरण शास्त्र का निर्माण कर परम निर्वाण प्राप्त किया | अत: भार्गवश्रेष्ठ ! तुम मनोमय ज्ञानतीर्थ का अवलम्बन करो | उन्होंने कल्याणमयी सर्वोत्तम तीर्थमयी गंगा प्रकट हुई है | गंगा से बढकर उत्तम तीर्थ न कोई हुआ है और न आगे होगा |