ओ मोहन मुरली वारे आजा रे नन्द दुलारे
दक्षिण भारत में मंगल्बेडा एक रियायत थी, श्री पंत जी शासक थे. लेकिन बेदर्ब का बादशाह जो मुसलमान था,
उसके ये अधीन थे .इन्हें टैक्स देना पड़ता था, उन दिनों दक्षिण में गोलकुंडा मुसलमानों की राजधानी थी. एक बार अकाल पड़ा. बहुत समय तक पानी की वर्षा नहीं हुई.
अकाल जब पड़ा तो लोगो ने पेड़ों की छाल ,पेड़ों के पत्ते खा-खाकर जीवन काटने लगे. दामा पन्तजी भक्त थे, बड़े दयालु थे.
इन्होंने सारा भंडार खोल दिया कि प्रजा खा ले. मंत्रियों ने कहा - कि क्या आपको मुसलमान बादशाह का डर नहीं ? श्री दामा बोले - मार देगा और क्या करेगा ?
ये प्रजा तो मर ही रही है.हजारों की जान बच जाएगी. हम ख़तम हो जांय तो कोई बात नहीं है.और उन्होंने सारा भंडार लुटा दिया.
ये खबर बादशाह के पास पहुँच गयी कि दामा पंत ने भंडार खोल दिये.सब हिन्दू खा गए. तो उसने सैकड़ों सिपाही भेजे कि दामा पंत को पकड़ के लाओ.सिपाही गए,जब वे उनके महल पहुँचे,
उस समय वे भजन में बैठे हुए थे.सिपाहियों ने महल खट- खटाया.उनकी स्त्री बड़ी सती थीं.सिपाहियों को रोकने की हिम्मत तो थी नहीं किसी में. सिपाही बहुत थे लेकिन उनकी पत्नी सती थीं
,सती का तेज अलग होता है.उनकी पत्नी अकेले गयीं और कहा - कि अभी तुम हमारे पति को नहीं छू सकते हो, अभी वे भजन में हैं, कुछ घंटे रुको.उनका तेज ऐसा था कि सिपाही बोले - ठीक है!
जब वे उठे भजन से तो दामा पंत को लोगों ने पकड़ लिया और कहा कि - आपको बादशाह ने बुलाया है.आपने ख़ज़ाना लुटा दिया है.बोले हाँ.ठीक है चलिए.
सिपाहियों ने कहा- कि आपको हथकड़ी पहननी पड़ेगी, ऐसा बादशाह का हुक्म है.बोले ठीक है हथकड़ी डाल दो.हथकड़ी डाल दी और लेकर चले गए.
सारी प्रजा रोती रही.मुसलमानी शासन के समय में कोई कुछ नहीं कर सकता था. गोलकुंडा के रास्ते में पंढरपुर पड़ता है.भगवान पंढरीनाथ वहां के नामी ठाकुर हैं.जैसे यहाँ श्रीनाथ जी हुए.
पंत जी ने सिपाहियों से कहा कि - एक बार हम दर्शन करना चाहते हैं.
सिपाहियों ने कहा - ठीक है.सिपाही भी जान रहे थे कि इन्होंने बुरा काम तो किया नहीं है.बोले कर लो दर्शन.
मंदिर में भगवान के सामने गए और नाचने लग गए.गोपाल जानते थे कि इनको फाँसी मिलेगी.बादशाह बड़ा क्रूर होता है.
श्री पंत जी ने कहा - ये तेरा मैं आखिरी दर्शन कर रहा हूँ.अब मैं कभी नहीं आऊँगा.और कीर्तन करते-करते प्रेम में गिर पड़े.
रोते रहे कि हे दीनबन्धो.अब मैं जा रहा हूँ.जीवन तो मेरा नहीं बचेगा लेकिन आपका दर्शन हो गया.फिर चल पड़े वहां से,हाथों में हथकड़ी. थी
इधर श्याम सुंदर ने एक चमार का वेष बनाया.
काली कमली ओढ़कर वहां पहुंचे,जहाँ बादशाह का दरबार था.वहां पहुँचने के बाद बोले - मुझको दामा पंत जी ने भेजा है.पहले तो सिपाही फटकार रहे थे फिर उसने कहा कि - तुम अपना पैसा ले लो.जितना तुम्हारा है,हम सब चुका देंगे.
तो सब लोगों ने कहा - कि आश्चर्य है, मज़दूर ऐसा कह रहा है.
सिपाही झट बादशाह के पास गए,बादशाह के पास उस चमार को ले गए. बादशाह ने देखा - कि एक काला कम्बल ओढ़े व्यक्ति है वह बोला कि - हम दामाजी के सेवक हैं,
आपके भंडार का जितना पैसा है,आप ले लीजिए.
बादशाह ने कहा - तुम्हारा नाम क्या है?
भगवान बोले - "बिट्ठू चमार",(बिट्ठल भगवान का नाम है).साफ-साफ कह भी दिया, पर वह पहचान भी नहीं पाया.लेकिन जब उस कम्बल से उन्होंने थोड़ा-सा मुख दिखाया तो राजा आश्चर्य में रह गया कि इतना सुन्दर चमार होता है.
ऐसा तो कभी देखा नहीं है, ऐसी प्यारी आँखे क्या किसी साधारण की होती है ?
बादशाह ने कहा - तो फिर लाओ कहाँ है तुम्हारे पास ?
एक छोटी सी थैली निकाली पूंछा इसमें हो जायगा ?
इन्होंने कहा - हां.नहीं चुके तब बताना, और तो बहुत बडी परात लिया और थोड़ी सी थैली उलटी की, वो परात भर गयी,वो थैली वैसी की वैसी सब पूरी रही.तो सिपाही देखने लग गए,बोले ये क्या चक्कर है ?
ये थैली तो खाली हुई नहीं और परात भर गयी.बोले अच्छा और लाओ बड़ा कढ़ाव लाया गया और थैली पूरी की पूरी भरी रही.
सब दौड़े बादशाह के पास कि हुजूर वो जाने क्या करिश्मा चमत्कार है ?
उस चमार ने बड़े-बड़े भंडार भर दिये हैं.आपका भंडार तो क्या जाने कितना चुका दिया है? बोले अच्छा. दामा पन्त का सेवक ऐसा,अरे बड़ी भूल हो गयी. दामा पन्त को छुड़ाके लाओ. हथकड़ी हटाकर लाओ.ये तो बहुत गलत काम हुआ है.
सब सिपाही दौड़े दामा पन्त के पास.रास्ते में उनकी हथकड़ी काटी गयी और जब बादशाह के पास पहुंचे तो बादशाह ने कहा - मैं गुनाहगार हूँ. दामाजी! आपने तो जाने कितना धन हमको दे दिया ?
लेकिन आपका दास कहाँ है ?दामाजी बोले मेरा सेवक और हमने आपको धन कहाँ दिया. बोले आपने नहीं दिया ?
राजा बोला - अरे वो आया था जिसकी काली कमली थी, बड़ा सुन्दर था.उसने कहा था मैं बिट्ठू चमार हूँ, वो सुन्दर था.उस मतवाली आँखों वाले को एक बार फिर से दिखाओ, एक बार फिर दिखा दो! इस तरह बड़े व्याकुल हो गए.
दामाजी समझ गए और बोले कि - ये तो श्याम सुन्दर की लीला है. हमारा न कोई बिट्ठू चमार सेवक है न पैसा न धेला.बोले बादशाह मैं उस बिट्ठू को दिखा नहीं सकता, बोले क्यों ?
वो बिट्ठू हमारा सेवक नहीं था.
बादशाह - आपका सेवक नहीं था , फिर कौन था ?
श्री पंत जी - वो वही था, जिसका दर्शन करने मैं गया था.
लेकिन बादशाह तो पागल हो गया.
"कहाँ गया, कहाँ गया, बिट्ठू प्यारा कहाँ गया ? काली कमली वाला बिठ्ठू , हाथ लकुटिया वाला बिट्ठू
रुपया देकर चित्त चुरा कर, गुरु को घायल कर गया
कहाँ गया, कहाँ गया, वो बिट्ठू प्यारा कहाँ गया"
दामाजी! मैं बिट्ठू के बिना जी नहीं सकता हूँ. सारे वजीर आश्चर्य कर रहे हैं कि क्या हो गया इस बादशाह को ?
बादशाह तो बस एक ही रट लगाये हुए थे.
"उसके बिना जियूं मैं कैसे, उसके बिना रहूँ कैसे?, कोई पीर न समझे मेरीड़पता रह गया
कहाँ गया बिट्ठू प्यारा कहाँ गया "
बिट्ठू बिट्ठू कह- कहकर पागलो की तरह चिल्लाने
"कहाँ गया तू मुझे बता दे, बित्थु को मुझे दिखा दे.
अरे श्रीदामा मैं चेरा तेरा,प्राण पियारा कहाँ गया. कहाँ गया, कहाँ गया, बिट्टू प्यारा कहाँ गया?
तेरा ही वह सेवक प्यारा मेरे नयनों का वह तारा.
मेरा प्राण बचा ले उसे दिखा , मेरे प्राण बचा ले दामा, मैं सेवक तेरा हुआ.
अरे कहाँ गया ?
दामाजी रोने लग गये. बोले - बादशाह! वो मेरे हाथ में नहीं है.वो तो तीनों लोक का स्वामी है. आया, चला गया.अब उसको बुलाने का एक ही रास्ता है
कि हम लोग सब भगवान का नाम लें, कीर्तन करें, बुलावें.वो अपनी इच्छा से आता है, अपनी इच्छा से जाता है. और उसका कोई रास्ता नहीं है.और सब गाने लगे.
"ओ मोहन मुरली वारे आजा रे नन्द दुलारे"....
"जय जय श्री राधे"