रहस्य-सप्तमी-व्रत के दिन त्याज्य पदार्थ का निषेध तथा व्रत का विधान एवं फल

ब्रह्माजी ने कहा – दिंडीन ! अब मैं रहस्य-सप्तमी व्रत का विधान कह रहा हूँ | इस व्रत के करने से अपनेसे आगे आनेवाली सात पीढ़ी तथा पीछे की भी सात पीढ़ी के कुलों का उद्धार हो जाता है | जो इस व्रत का नियम से पालन करता है, उसे धन, पुत्र, आरोग्य, विद्या, विनय, धर्म तथा अप्राप्य वस्तु की भी प्राप्ति हो जाती है |
इस व्रत के नियम इस प्रकार हैं – सबमें मैत्रीभाव रखते हुए भगवान् सूर्यका चिन्तन करता रहे | मनुष्य को व्रत के दिन न तेल का स्पर्श करना चाहिये, न नीला वस्त्र धारण करना चाहिये तथा न आँवले से स्नान करना चाहिये | किसीसे कलह तो करे ही नहीं | इस दिण नीला वस्त्र धारण करके जो सत्कर्म करता हैं, वह निष्फल होता है | जो ब्राह्मण इस व्रत के दिन एक बार नीला वस्त्र धारण कर ले तो उसे उचित है कि स्वयं की शुद्धि के लिये उपवास करके पंचगव्य प्राशन करे, तभी वह शुद्धि होता हिया | यदि अज्ञानवश नील वृक्ष की लकड़ी से कोई ब्राह्मण दंतधावन कर लेता है तो वह दो चान्द्रायण व्रत करनेसे शुद्ध होता है | इस दिन रोमकूप में नीले रंग के प्रवेश करनेमात्र से ही तीन कृच्छ्र चान्द्रायण व्रत करनेसे शुद्धि होती है | जो व्यकित प्रमादवश नील वृक्ष के उद्धान में चला जाता है वह पंचगव्य प्राशन से ही शुद्ध होता है | जहाँ नील एक बार बोयी जाती है, वह भूमि बारह वर्षतक अपवित्र रहती है |
रहस्य-सप्तमी-व्रत के दिन जो तेल का स्पर्श करता है, उसकी प्रिय भार्या नष्ट हो जाती है, अत: तैल का स्पर्श नहीं करना चाहिये | इस तिथि को किसीके साथ द्रोह और क्रूरता भी करना उचित नहीं है | इस दिन गीत गाना, नृत्य करना, वीणादि वाद्ययंत्र बजाना, शव देखना, व्यर्थ में हँसना, स्त्री के साथ शयन करना, रतक्रीडा, रोना, दिनमें सोना, असत्य बोलना, दुसरे के अनिष्ट का चिन्तन करना, किसी भी जीव को कष्ट देना, अत्यधिक भोजन करना, गली-कुचों में घूमना, दम्भ, शोक, शठता तथा क्रूरता – इन सबका प्रयत्नपूर्वक परित्याग कर देना चाहिये |

इस व्रत का आरम्भ चैत्र मास से करना चाहिये | व्रत करनेवाले मनुष्य को चाहिये कि वह चैत्रादि मासों में धाता, अर्यमा, मित्र, वरुण, इंद्र, विवस्वान, पर्जन्य, पूषा, भाग, त्वष्ठा, विष्णु तथा भास्कर – इन द्वादश सुर्योंका क्रमश: पूजन करे | प्रत्येक सप्तमी के दिन भोजक ब्राह्मण को घी के साथ भोजन कराकर उसे घृतसहित पात्र, एक माशा सुवर्ण और दक्षिणा देनी चाहिये | यदि भोजक ण मिल सके तो श्रेष्ठ ब्राह्मण को ही भोजन की भाँती भोजन कराकर वही वस्तुएँ दान में देनी चाहिये |
हे दिंडीन ! इसप्रकार मैंने सप्तमी के इस माहात्म्य का वर्णन किया, जिसके श्रवणमात्र से भी सभी पाप नष्ट हो जाते है और सूर्यलोक की प्राप्ति होती है |
सुमन्तु बोले – राजन ! इतना कहकर ब्रम्हाजी अन्तर्धान हो गए और दिंडी भी उनके द्वारा बताये गये इस व्रतके अनुसार सूर्यनारायण का पूजन करके अपने मनोवांछित फल को प्राप्त करने में सफल हुए और भगवान् सूर्य के अनुचर हो गए |