सूर्यनारायण की द्वादश मूर्तियों का वर्णन

राजा शतानीक ने कहा – महामुने ! साम्ब के द्वारा चन्द्रभागा नदी के तटपर सूर्यनारायण की जो स्थापना की गयी है, वह स्थान आदिकाल से तो नहीं हैं, फिर भी आप इस स्थान के माहात्म्य इतना वर्णन कैसे कर रहे हैं ? इसमें मुझे संदेह है | सुमन्तु मुनि बोले – भारत ! वहाँपर सूर्यनारायण का स्थान तो सनातन कालसे हैं | साम्ब ने उस स्थान की प्रतिष्ठा तो बाद में की है | इसका हम संक्षेप में वर्णन करते हैं | आप प्रेमपूर्वक उसे सुने – इस स्थानपर परमब्रह्मस्वरुप जगत्स्वामी भगवान् सूर्यनारायण ने अपने मित्ररूप में तप किया है | वे ही अव्यक्त परमात्मा भगवान् सूर्य सभी देवताओं और प्रजाओं की सृष्टि करके स्वयं बारह रूप धारण कर अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए | इसीसे उनका नाम आदित्य पड़ा | इंद्र, धाता, पर्जन्य, पूषा, त्वष्टा, अर्यमा, भग, विवस्वान, अंशु, विष्णु, वरुण तथा मित्र – ये सूर्य भगवान् की द्वादश मूर्तियाँ हैं | इन सबसे सम्पूर्ण जगत व्याप्त हैं | इनमें से प्रथम इंद्र नामक मूर्ति देवराज में स्थित हैं, जो सभी दैत्यों और दानवों का संहार करती हैं | दूसरी धाता नामक मूर्ति प्रजापति में स्थित होकर सृष्टि की रचना करती है | तीसरी पर्जन्य नामक मूर्ति किरणों में स्थित होकर अमृतवर्षा करती है | पूषा नामक चौथी मूर्ति मन्त्रों में अवस्थित होकर प्रजापोषण का कार्य करती है | पाँचवी त्वष्टा नामकी जो मूर्ति है, वह वनस्पतियों और ओषधियों में स्थित है | छठी मूर्ति अर्यमा प्रजा की रक्षा करने के लिये पुरों में स्थित है | सातवी भग नामक मूर्ति पृथ्वी और पर्वतों में विद्यमान है | आठवीं विवस्वान नामक मूर्ति अग्निमें स्थित है और वह प्राणियों के भक्षण किये हुए अन्नको पचाती है | नवीं अंशु नामक मूर्ति चन्द्रमा में अवस्थित है, जो जगत को आप्यायित करती है | दसवीं विष्णु नामक मूर्ति दैत्यों का नाश करने के लिये सदैव अवतार धारण करती है | ग्यारहवीं वरुण नाम की मूर्ति समस्त जगत की जीवनदायिनी है और समुद्र में उसका निवास है | इसलिये समुद्र को वरुणालय भी कहा जाता है | बारहवीं मित्र नामक मूर्ति जगत का कल्याण करने के लिये चंद्रभागा नदी के तटपर विराजमान है | यहाँ सूर्यनारायण ने मात्र वायु-पान करके तप किया है और मित्र-रूप से यहाँपर अवस्थित है, इसलिये इस स्थान को मित्रपद (मित्रवन) भी कहते है | ये अपनी कृपामयी दृष्टी से संसारपर अनुग्रह करते हुए भक्तों को भाँती-भाँती के वर देकर संतुष्ट करते रहते है | यह स्थान पुण्यप्रद हैं | महाबाहो ! यहींपर अमित तेजस्वी साम्ब ने सूर्यनारायण की आराधना करके मनोवांछित फल प्राप्त किया है | उनकी प्रसन्नता और आदेशसे साम्ब ने यहाँ भगवान् सूर्य को प्रतिष्ठापित किया | जो पुरुष भक्तिपूर्वक सूर्यनारायण को प्रणाम करता है और श्रद्धा-भक्तिसे उनकी आराधना करता हैं, वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर सूर्यलोक में निवास करता हैं |