अमरकथा

यह अमर कथा माता पार्वती तथा भगवान शंकर का सम्वाद है। स्वयं श्री सदाशिव इस कथा को कहने वाले हैं। यह प्राचीन धर्म ग्रंथों से ली गई है, जिनमें भृंगु संहिता, निलमत पुराण और लावनी-ब्रह्मज्ञान उल्लेखनीय हैं। यह लोक व परलोक का सुख देनेवाली मानी गई है। स्वयं शिवजी द्वारा दिये गये वरदान के अनुसार इस कथा को श्रद्धापूर्वक पढ़ने या सुनने वाला मनुष्य शिवलोक को प्राप्त करता है।

श्री अमरनाथ की गुफा का रहस्य

माता पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिये, श्री शंकर जी ने अमरनाथ की गुफा को हीं क्यों चुना ?

युगों पहले, जब पार्वती के मन में यह शंका उत्पन्न हुई कि शंकर जी ने अपने गले में मुण्डमाला क्यों और कब धारण की है, तो शंकर जी ने उत्तर दिया कि – हे पार्वती ! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ उतने ही मुण्ड मैंनें धारण कर लिए। इस पर पार्वती जी बोलीं कि मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, परंतु आप अमर हैं, इसका कारण बताने की कृपा करें। भगवान शिव ने रहस्यमयी मुस्कान भरकर कहा- यह तो अमरकथा के कारण है।
ऐसा सुनकर पार्वती के मन में भी अमरत्व प्राप्त कर लेने की इच्छा जागृत हो उठी और वह अमर कथा सुनाने का आग्रह करने लगीं। कितने ही वर्षों तक शिवजी इसको टालने का प्रयत्न करते रहे, परंतु पार्वती के लगातार हठ के कारण उन्हें अमरकथा को सुनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। परन्तु समस्या यह थी कि कोई अन्य जीव उस कथा को ना सुने। अत: किसी एकांत व निर्जन स्थान की खोज करते हुए श्री शंकर जी पार्वती सहित, अमरनाथ की इस पर्वत मालाओं में पहुँच गये।
इस “ अमर-कथा ” को सुनाने से पहले भगवान शंकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि कथा निर्विघ्न पूरी की जा सके, कोई बाधा ना हो तथा पार्वती के अतिरिक्त अन्य कोई प्राणी उसे न सुन सके। उचित एवं निर्जन-स्थान की तलाश करते हुए वे सर्वप्रथम “पहलगाम” पहुँचे, जहाँ उन्होंने अपने नंन्दी (बैल) का परित्याग किया। वास्तव में इस स्थान का प्राचीन नाम बैल-गाँव था, जो कालांतर में बिगड़कर तथा क्षेत्रीय भाषा के उच्चारण से पहलगाम बन गया।

तत्पश्चात् “ चदंनबाड़ी ” में भगवान शिव ने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को मुक्त किया। “ शेषनाग” नामक झील पर पहुँचे कर उन्होंने, अपने गले से सर्पों की मालाओं को भी उतार दिया। इसी कथा के आधारभूत शेषनाग-पर्वत पर नागों की अकृतियाँ विद्यमान हैं। हाथी के सिर व सूंड वाले प्रिया –पुत्र, श्री गणेश जी को भी उन्होंने “ महगुनस-पर्वत” पर छोड़ देने का निश्चय किया। जिस स्थान का प्राचीन एवं शुद्ध उच्चारण महा-गणेश था, जो धीरे-धीरे, सम्भवत: काश्मीरी भाषा के प्रभाव से, महागुनस हो गया। फिर- “पंचरत्नी” नामक स्थान पर पहुँच कर शिव ने पंच-तत्वों (पृथवी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) का परित्याग कर दिया । भगवान् शिव इन्हीं पंच-तत्वों के स्वामी माने जाते हैं जिनको उन्होंने श्री अमरनाथ गुफा में प्रवेश से पहले छोड़ दिया था। इसके पश्चात् शिव-पार्वती ने इस पर्वत – श्रृंखला में ताण्डव – नृत्य किया था। ताण्डव – नृत्य वास्तव में सृष्टि के त्याग का प्रतीक माना गया। सब कुछ छोड़छाड़ कर, अंत में भगवान शिव ने श्री अमरनाथ की इस गुफा में, पार्वती सहित प्रवेश किया और मृगछाला बिछाकर पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाने के लिये ध्यान मग्न होकर बैठ गये। लेकिन इससे पहले उन्होंने कलाग्नि नामक रुद्र को प्रकट किया और आज्ञा दी- “ चहुँ ओर ऐसी प्रचण्ड - अग्नि प्रकट करो, जिसमें समस्त जीवधारी जल कर भस्म हो सकें ”कलाग्नि ने ऐसा हीं किया। अब संतुष्ट होकर सिव ने अमरकथा कहनी शुरु की, परंतु उनकी मृगछाला के नीचे, तोते का एक अण्डा ( अण्डा भस्म नहीं हुआ : इसके दो कारण थे। एक तो मृगछाला के नीचे होने से शिव की शरण पाने के कारण और दूसरा अण्डा जीवधारियों के श्रेणी में नहीं आता) फिर भी बच गया था, जिसने अण्डे से बाहर आकर अमरकथा को सुन लिया।

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कात्यायन तथा मगध के राजा महानंद की कथा - ⇒पूरा पढे सूतजी बोले – शौनक ! उज्जयिनी नगरी में एक हिंसापरायण मद्य-मांस-भक्षी भीमवर्मा नामका क्षत्रिय रहता था |

श्रीकृष्ण-साम्ब-संवाद तथा भगवान् सूर्यनारायण कि पूजन-विधि - ⇒पूरा पढे

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मालिक कौन - ⇒पूरा पढे

सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान का आशीर्वाद मानकर उसे स्वीकार करते हैं सुख और दुःख प्रभु की ही कृपा और कोप का परिणाम ही तो हैं । - ⇒पूरा पढे

श्रीपंचमीव्रत कथा - ⇒पूरा पढे

एक बूढ़ा ब्राह्मण था वह रोज पीपल को जल से सींचता था । - ⇒पूरा पढे

प्रेम की देवी श्रीराधा - ⇒पूरा पढे

रहस्य-सप्तमी-व्रत के दिन त्याज्य पदार्थ का निषेध तथा व्रत का विधान एवं फल - ⇒पूरा पढे

राजा भोज और महामद की कथा - ⇒पूरा पढे सूतजी ने कहा – ऋषियों ! शालिवाहन के वंश में दस राजा हुए | उन्होंने पाँच सौ वर्षतक शासन किया और स्वर्गवासी हुए | तदनंतर भूमंडलपर धर्म-मर्यादा लुप्त होने लगी |

राजा धर्मवल्लभ और मंत्री सत्यप्रकाश की कथा - ⇒पूरा पढे

राजा रूपसेन तथा वीरवर की कथा - ⇒पूरा पढे सूतजी बोले – महामुने ! एक बार रुद्र्किंकर वैताल ने सर्वप्रथम भगवान शंकर का ध्यान किया और फिर महाराज विक्रमादित्य से इस प्रकार प्रारम्भ किया

राम नाम कि महिमा - ⇒पूरा पढे एक बार की बात है एक महात्मा रात्रि के समय ‘श्रीराम’ नाम का जप करते हुये किसी घने जंगल से गुजरे

राम नाम कि महिमा - ⇒पूरा पढे एक बार समुद्र तट पर एक मनुष्य उदास बैठा था । तभी उधर से रामभक्त लंकापति विभीषण गुजरे । उन्होंने उस मनुष्य से पूछ- “तुम उदास क्यों है ? मुझे बताओ ।”

रथसप्तमी तथा भगवान् सूर्य की महिमा का वर्णन - ⇒पूरा पढे रथसप्तमी तथा भगवान् सूर्य की महिमा का वर्णन

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शब्दों का जहर - ⇒पूरा पढे

व्रतोपवास की महिमा में शकटव्रत की कथा - ⇒पूरा पढे

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महाभारत के युद्ध में भोजन प्रबंधन - ⇒पूरा पढे श्रावणपूर्णिमा को रक्षाबंधन की विधि

शुक्राचार्य की घोर तपस्या और इनका शिवजी को चित्ररत्न अर्पण करना तथा अष्टमृर्त्यष्टक – स्तोत्रद्वारा उनका स्तवन करना, शिवजी का प्रसन्न होकर मृतसंजीवनी विद्या प्रदान करना - ⇒पूरा पढे

सिद्धार्थ-सप्तमी- व्रत के उद्यापन की विधि - ⇒पूरा पढे

स्कन्द – षष्ठी – व्रत की महिमा - ⇒पूरा पढे

सूर्यनारायण की द्वादश मूर्तियों का वर्णन - ⇒पूरा पढे

उमामहेश्वर व्रत की विधि - ⇒पूरा पढे

बाणासुर की तपस्या और उसे शिवद्वारा वर-प्राप्ति, शिव की आज्ञा से श्रीकृष्ण का उन्हें जृम्भणास्त्रसे मोहित करके बाण की सेना का संहार करना - ⇒पूरा पढे

विनायक – पूजा का माहात्म्य - ⇒पूरा पढे

विष्णुद्वारा तुलसी के शील-हरणका वर्णन, कुपित हुई तुलसीद्वारा विष्णु को शाप, - ⇒पूरा पढे

व्याधकर्मा की कथा - ⇒पूरा पढे

गाय का झूठा गुड़ - ⇒पूरा पढे एक शादी के निमंत्रण पर जाना था, पर मैं जाना नहीं चाहता था। एक व्यस्त होने का बहाना और दूसरा गांव की शादी में शामिल

गौ महिमा - ⇒पूरा पढे एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा- नाथ! आपने बताया है कि ब्राह्मण की उत्पत्ति भगवान् के मुख से हुई है; फिर गौओं की उससे तुलना कैसे हो सकती है ? विधाता!

भगवान शंकर के पूजा अर्चना के बारे में जानकारी - ⇒पूरा पढे जिस भीषण हलाहल विष से सब देवतागण जल रहे थे उसको जिन्होंने स्वयं पान कर लिया, रे मन्द मन! तू उन शंकरजी को क्यों नहीं भजता? उनके समान कृपालु (और) कौन है?

बहुत ही सुंदर कथा - ⇒पूरा पढे एक ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया आखिर दोपहर हो गयी ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः

प्रेरक कहानी: हे श्री कृष्ण! तुम सर्वज्ञ हो.. - ⇒पूरा पढे एक वृद्ध महिला एक सब्जी की दुकान पर जाती है, उसके पास सब्जी खरीदने के पैसे नहीं होते है। वो दुकानदार से प्रार्थना करती है कि उसे सब्जी उधार दे दे पर दुकानदार मना कर देता है।

जैसा खाया अन्न वैसा बना मन - ⇒पूरा पढे बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा। सेठ ने सोचा कि इतना पाप हो रहा है, तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।

अंगो के फड़कने का रहस्य - ⇒पूरा पढे अन्य प्राणियों की तुलना में हमारा शरीर काफी संवेदनशील होता है। यही कारण है कि भविष्य में होने वाली घटना के प्रति हमारा शरीर पहले ही आशंका व्यक्त कर देता है।

जगत की रीत - ⇒पूरा पढे एक बार एक गाँव में पंचायत लगी थी। वहीं थोड़ी दूरी पर एक सन्त ने अपना बसेरा किया हुआ था। जब पंचायत किसी निर्णय पर नहीं पहुच सकी तो किसी ने कहा कि क्यों न हम महात्मा जी के पास अपनी समस्या को लेकर चलें अतः सभी सन्त के पास पहुँचे।

बहुत शिक्षाप्रद कहानी है हम सबके जीवन से जुड़ी। पढ़े - ⇒पूरा पढे एक अतिश्रेष्ठ व्यक्ति थे , एक दिन उनके पास एक निर्धन आदमी आया और बोला की मुझे अपना खेत कुछ साल के लिये उधार दे दीजिये ,मैं उसमे खेती करूँगा और खेती करके कमाई करूँगा।

सात शरीर,सात जगत और सात चक्र - ⇒पूरा पढे आत्मा के सात शरीर होते हैं और जिन जिन परमाणुओं से वे सातों शरीर निर्मित होते हैं,उन्ही-उन्ही परमाणुओं से सात लोकों का भी निर्माण हुआ है जो निम्न लिखित हैं--

अगाध भक्ति और प्रेम की कथा -"शबरी" और उसकी" नवधा भक्ति" - ⇒पूरा पढे शबरी का उल्लेख रामायण में भगवान श्री राम के वन-गमन के समय मिलता है। शबरी को श्री राम के प्रमुख भक्तों में गिना जाता है। अपनी वृद्धावस्था में शबरी हमेशा श्री राम के आने की प्रतीक्षा करती रहती थी। राम उसकी कुटिया में आयेंगे,

महर्षि वाल्मीकि का पहले का नाम रत्नाकर था - ⇒पूरा पढे महर्षि वाल्मीकि का पहले का नाम रत्नाकर था। इनका जन्म पवित्र ब्राह्मण कुल में हुआ था, किन्तु डाकुओं के संसर्ग में रहने के कारण लूट-पाट और हत्याएँ करने लगे और यही इनकी अजीविका का साधन बन गया। इन्हें जो भी मार्ग में मिल जाता, ये उसकी सम्पत्ति लूट लिया करते थे।

भगवान शिव का अनुपम सौंदर्य - ⇒पूरा पढे एक बार गणेशजी ने भगवान शिवजी से कहा, पिताश्री ! आप यह चिताभस्म लगाकर, मुण्डमाला धारणकर अच्छे नहीं लगते, मेरी माता गौरी अपूर्व सुंदरी और आप उनके साथ इस भयंकर रूप में।

दशहरा अथवा विजयदशमी का संबंध एक नहीं, दो-दो पौराणिक युद्धों से है - ⇒पूरा पढे त्रेतायुग में भगवान श्रीराम और रावण के बीच संघर्ष इसी दिन समाप्त हुआ था तो वहीं द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध इसी दिन प्रारंभ हुआ था।

हीरों का हार - ⇒पूरा पढे हम जिस सांसारिक चीज में सुख-शांति और आनंद देखते हैं दरअसल वह उसी हार की तरह है जो क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है

खाटूश्याम का मंदिर कहाँ है और कैसे पहुंचें - ⇒पूरा पढे खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है महाभारत के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया था

मूलभूत सिद्धांत - ⇒पूरा पढे जन्मकुंडली १२ भावों में विभाजित होती है और प्रत्येक भाव का अपना कारकत्व होता है।

राधा की जलन - ⇒पूरा पढे एक बार राधा कृष्ण आपस में बाते कर रहें थे। राधा ने कृष्ण से कहा कि तुम मुरली बजाते हो तो मैं सुधबुध खो बैठती हूं औऱ रातभर मेरी आंखे खुली रहती हैं।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग - ⇒पूरा पढे एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर भगवान्‌ शिव का दर्शन प्राप्त करने के लिए बड़ी घोर तपस्या की। उसने एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किए।

वृंदावन का इतिहास - ⇒पूरा पढे वृन्दावन सो वन नहीं , नन्दगांव सो गांव। बंशीवट सो बट नहीं, कृष्ण नाम सो नाम ।।

कर्मो का फल - ⇒पूरा पढे महाराज धृतराष्ट्र ने भगवान् वेदव्यासजी महाराज से पूछा कि महाराज ! मेरे सौ पुत्र मेरे सामने मारे गये, बड़ा आश्चर्य है ! मुझे अपने पिछले सौ जन्मों का स्मरण है कि मैंने एक भी पाप उनमें नहीं किया, फिर मेरे सौ बेटे क्यों मरे मेरे सामने ?

कर्मों का हिसाब - ⇒पूरा पढे किसी नगर में एक सेठ रहता था। समय के फेरे से वह अत्यंत गरीब हो गए । पुनः समृद्धि के लिए हमेशा गोपाल सहस्रनाम का पाठ, अर्चना आदि किया करते।

गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी - ⇒पूरा पढे 1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं

जीवन जीने के कुछ जरूरी नियम बनायें। - ⇒पूरा पढे ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।

तुम्हारा कोई गुरु है - ⇒पूरा पढे एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है।

तुलसी का पौधा और परिवार - ⇒पूरा पढे तुलसी का पौधा किचन के पास रखने से घर के सदस्यों में आपसी प्रेम, सामंजस्य बना रहता है।

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रानियों के मन की व्यथा - ⇒पूरा पढे जब भगवान श्री कृष्ण पृथ्वी लोक पर अपनी लीला समाप्त करके अपने धाम को चले गए तब भगवान की विरह-वेदना में उनकी सोलह हजार रानियाँ दुखी रहने लगीं

शिव भगवान अपने शरीर पर भस्म क्यों लगाते हैं - ⇒पूरा पढे भक्त सावन के पूरे महीने में भगवान शिव की पूरे मन से पूजा करते हैं ताकि वह उन्हें खुश कर सके।

श्राद्ध पक्ष की पौराणिक कथा - ⇒पूरा पढे श्राद्ध पक्ष की पौराणिक कथा

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