भगवान शिव की कथा
महादेव जी कैलाश पर्वत पर जा रहे थे। पार्वती जी बोली मैं भी चलूँगी। महादेव जी बोले पार्वती जी तुम मत चलो, तुम्हें भूख, प्यास लगेगी। बोली महाराज मैं भी चलूँगी। रास्ते में बोलीं, महाराज मुझे भूख लगी है। मुझे तो खीर-खांड का भोजन चाहिए। महादेव जी बोले मैंने तो कहा था मत चलो।
जब अश्व उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया और अयोध्या के साधारण सैनिकों से कहा यज्ञ का घोडा उनके पास है इसलिए वे जाकर शत्रुघ्न से कहें की विधिवत युद्ध कर वो अपना अश्व छुड़ा लें। जब रुक्मांगद ने ये सूचना अपने पिता को दी तो वो बड़े चिंतित हुए और अपने पुत्र से कहा की अनजाने में तुमने श्रीराम के यज्ञ का घोडा पकड़ लिया है। श्रीराम हमारे मित्र हैं और उनसे शत्रुता करने का कोई औचित्य नहीं है इसलिए तुम यज्ञ का घोडा वापस लौटा आओ। इसपर रुक्मांगद ने कहा कि हे पिताश्री, मैंने तो उन्हें युद्ध की चुनौती भी दे दी है अतः अब उन्हें बिना युद्ध के अश्व लौटना हमारा और उनका दोनों का अपमान होगा। अब तो जो हो गया है उसे बदला नहीं जा सकता इसलिए आप मुझे युद्ध कि आज्ञा दें। पुत्र की बात सुनकर वीरमणि ने उसे सेना सुसज्जित करने की आज्ञा दे दी। राजा वीरमणि अपने भाई वीरसिंह और अपने दोनों पुत्र रुक्मांगद और शुभांगद के साथ विशाल सेना ले कर युद्ध क्षेत्र में आ गए।
एक साहूकार के घर आ गए। साहूकारनी बोली महाराज क्या चाहिए। महादेव जी बोले हमारी पार्वती जी को खीर-खांड का भोजन चाहिए, वो बोली मोड़ा-मोड़नी नै खीर-खांड के भोजन चाहिए था, तो घर में क्यों न रहे,आगे चल। आगे चल दिये एक बुढिया मिली। बोली, आओ महाराज बैठो। महादेव जी बोले पार्वती जी को खीर-खांड का भोजन चाहिये।
बुढ़िया लोटा लेके चल दी। महादेव जी बोले बुढ़िया कहाँ चली। वह बोली, 'दूध, चावल, खांड लेने जाऊँ हूँ।' महादेव जी बोले, 'घर में देख, देखे तो दूध के टोकने भरे हैं, चावल की परात भरी है, खांड की बोरी धरी है।' टोकना भर के खीर बना ली। महादेव पार्वती जिमा दिया। बुढ़िया बोली अब इसका क्या करूँ। मेरे तो कोई भी नहीं है। महादेव जी बोले आँख मीच। आँख मींच लीं। आँख खोलकर देखे तो खूब परिवार हो रहा है अब बोली महाराज, 'परिवार को कहाँ रखूँ। महादेव जी ने झोपड़ी के लात मारी, महल हो गया। अब खीर कटोरे भर-भर के बाँटने लगी। साहूकारनी आई, बोली, 'तेरे खीर कहाँ से आई ?' बोली 'हमारे महादेव पार्वती जी आए थे।'
साहूकारनी बोली, 'मेरा धन तेरे को दे गए मुझे कुछ भी ना रहा।' अब वो भागी चली गई मोड़ा-मोड़नी ठहरियो बोली, 'मेरा धन उसको क्यों दे दिया।' महादेव बोले, 'तैने ना करी, तेरा ना हो गया उसने हाँ करी उसके हाँ हो गया मैंने तो ना उठाया ना डाला।'
पैर पकड़ के खड़ी हो गई, महाराज कुछ दो। बोले, 'तेरे घीलडी में घी रहेगा, तेलड़ी में तेल रहेगा। काम तेरा रुके ना धन तेरा जुड़े ना।' जैसे बुढ़िया ने पाया ये सब कोई पावें।