श्री शुकदेव का जन्म
भगवान शंकर की आज्ञा पाकर कालग्नि ने ऐसा हीं किया और अदृश्य हो गया। जिस आसन पर भगवान श्री शंकर बैठे थे उसके नीचे एक तोते का अण्डा पहले से ही था जो कि कालाग्नि को दिखाई नहीं दिया। इसके पश्चात् भगवान श्री शंकर नेत्र मूंद कर एकाग्रचित हो पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे और पार्वती जी उनके हर वाक्य पर हुंकारा भरने लगीं। धीरे-धीरे पार्वती जी को नींद आने लगी। उसी समय उस अण्डे में से जीव प्रकट हुआ । श्री पार्वतीजी तब तक हुंकारा देते-देते सो चुकी थी। अब उसके स्थान पर तोता हुंकारा देने लगा। जब भगवान शंकर अमर कथा समाप्त कर चुके तो श्री पार्वतीजी की आँखे खुलीं। भगवान श्री शंकर ने उनसे पूछा कि क्या- उन्होंने अमर कथा सुनी है ? श्री पार्वती ने उत्तर दिया कि अमर कथा नहीं सुनी। इस पर भगवान श्रीशंकर ने पूछा- “ तब हुंकारा कौन देता था ? ”
पार्वती जी बोली –“ मुझे नहीं मालूम ।”
तब भगवान श्री शंकर ने इधर-उधर देखा तो उनको एक तोता दिखाई दिया जो कि उनके देखते ही देखते उड़ गया। भगवान शंकर उठकर पीछे दौड़े । वह तोता उड़ता- उड़ता तीनों लोकों में गया लेकिन उसको कहीं जगह नहीं मिली। श्री वेदव्यास की पत्नी अपने घर के द्वार पर बैठी जम्हाई ले रही थी, बस तोता उनके पेट में चला गया। भगवान श्री शंकर ने कहा- ‘ व्यास जी मेरा चोर आपके घर में है। ’
महर्षि व्यास बोले – ‘ प्रभो ! हमारे घर में तो कोई चोर नहीं है ।’
भगवान श्री शंकर के कहने पर महर्षि व्यास जी ने अपनी पत्नी से पूछा। उसने उत्तर दिया- “ ऐसा जान पड़ता है जैसे कि मेरे पेट में कोई पक्षी गया है ।”
महर्षि व्यास जी ने यह बात भगवान श्री शंकर से कही और साथ ही कहा- ‘ आपकी जैसी इच्छा हो वैसा कर सकते हैं। लेकिन यह तो आप जानते ही हैं कि स्त्री को मारना पाप है ।’
श्री वेद्व्यास की यह बात सुनकर श्री शंकर लौट गये। वह तोता कई वर्षों तक ऋर्षि-पत्नी के पेट में रहा। लेकिन जब ऋषि पत्नी के पेट का कष्ट अधिक बढ़ गया तो श्री वेद व्यास जी ब्रह्माजी और उसके पश्चात् श्री विष्णु के पास गये। फिर तीनों मिलकर भगवान श्री शंकर के पास गये। इसके पश्चात् चारों श्री वेद्व्यास जी के स्थान पर आए और पक्षी की स्तुति करने लगे। पक्षी जो भगवान श्री शंकर जी से अमर कथा सुनकर चारों वेदों तथा अट्ठारह पुराणों का ज्ञानी हो गया था, कहने लगा- “ जब तक जगत निर्मोही नहीं होगा तब तक मैं मां के पेट से बाहर नहीं निकलूंगा ।” इस पर भगवान विष्णु ने अपनी माया से जगत को निर्मोही कर दिया। इस पर वह तोता बालक रूप होकर मां के पेट से बाहर आ गया और उसका नाम शुकदेव हुआ। श्री शुकदेव अपने जन्म के साथ ही सबको प्रणाम करके जंगल की ओर चल दिये और फिर भगवान विष्णु ने अपनी माया हटा दी और जगत पुन: मोह्युक्त हो गया। इस पर श्री वेदव्यास जी अपने पुत्र के लिये व्याकुल होकर श्री शुकदेव के पीछे जंगल में दौड़े और उनके पास पहुँचकर उनसे घर चलने को कहा। श्री शुकदेव जी ने कहा- “ जगत निर्मोही है। यहाँ न कोई किसी का पुत्र है और न कोई किसी का पिता ।”
श्री वेदव्यास जी बोले- ‘ अब ऐसा नहीं है ।’
श्री शुकदेव जी ने ध्यान लगा कर देखा तो मालूम हुआ कि भगवान श्री विष्णु ने उनके साथ छल किया है। इस पर उन्होंने वेदव्यास जी से कहा- “जब तक मैं गुरु धारण नहीं कर लूंगा, वापिस घर नहीं जाऊंगा और गुरु धारण करने के बाद मैं घर आकर आपकी सेवा करूंगा ।”
Birth of Shree Shukadev
Kaalagni did the same as per God Shankar order and disappeared from that place.A parrot egg already presented at the place where God Shiva sat and Kaalagni did not shown that. After that, God Shankar closed his eyes and started to told amarakathaa to goddess Paarvati with concentration and Paarvati replied “hoon” on his every sentence. At the same time parrot appeared from the egg.Shree Paarvati Jee slept to replied “hoon” till time.Now the parrot had started to reply “hoon” in place of Goddess Paarvati.When God Shankar had finished the story ,then Shree Paarvati jee get up.god Shankar asked to her- “Did she listen Amar Katha? ”Shree Paarvati Jee replied that no she didn’t listen the story.Shree Shankar asked on this- “Then who replied”
Paarvati Jee Said- “I don’t know.”
Then God Shiva searched here and there and found a parrot, who flied away befor them. God Shankar rushed towards that parrot.That parrot flied three lokas but he did not get place for self.Shree Ved Vyaas’s wife was yawning at her door, so, the parrot entered in his stomach through mouth.God Shankar said- ‘ Vyaas Jee! My thief is in your house.’
Maharshi Vyaas told- “Prabho! There is no thief in my house.”
Maharshi Vyaas asked to his wife and she replied- “It seems, that a bird entered in my stomach.”
Maharshi Vyaas told this to God Shankar and also said- “You can do what you want.But you already know that it is a sin to kill woman.”
Shree Shankar returned back to hear this from Shree Ved Vyaas. That parrot had reside in the stomach of Saint-wife for many years. But when the Saint-wife suffered with stomach pain very much then Shree Ved Vyaas went to Brahmaa Jee and after that Shree Vishnu Jee. All three went to meet God Shankar.There after all four arrived at the home of Shree Ved Vyaas and start prayer for bird.Then the bird said , who became scholar of four Vedas and eeighteen scriputers after listening the amar katha from Shree shankar – “I will not out from mother’s stomach unless the world will be loveless”.So, God Vishnu made the world loveless with his illusion. Then that parrot came out from mother’s stomach and his name was shukadev.Shree Shukadev bow down to all and went to forest after his birth. God Vishnu removed his illusion and the world again with love. Shree Ved Vyaas get worried for his son .He reached at Shukadeev Muni and requested to return back home.Shree Shukadev Muni said- “World is loveless. No one’s son and not the father of any here.”
Shree Ved Vyaas Jee said- “Not anymore.”
Shree Shukdev Jee seen with meditation and he found that god Vishnu cheated him.So, He told to Shree Shukadev- “I will not go back home, unless I hold teacher and I will serve you at home after holding teacher. ”