• आरती- कर्पूर से शिवजी आरती करें :-

कदली गर्भ सम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम्।

आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्यसे वरदो भव ॥

• पुष्पांजलि: - खड़े होकर हाथ में पुष्प लेकर शिव जी को पुष्पांजलि अर्पित करें:-

shiv third eye

• विसर्जन - तदंतर शंभु का विसर्जन करें। (हर प्रहर के पूजा के बाद विसर्जन करें।)। हाथ में अक्षत तथा पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये अक्षत तथा पुष्प शिव जी पर समर्पित करें।

shiv pujan mantra

इसके बाद शिवरात्रि कथा को सुने अथवा सुनायें। उपरोक्त विधि से चारों प्रहर में शिवजी का पूजन विधिपूर्वक रात्रि जागरण करें । सुबह होने पर साधक स्नान कर शुद्ध हो, स्वच्छ वस्त्र धारण करें। विधिपूर्वक शिव जी की पूजा-अर्चना करे।

• प्रार्थना:- दोनों हाथ जोड़कर निम्न मंत्र के दवारा प्रार्थना करें:-

shiv aaratee

अर्थ: सुखदायक कृपानिधान शिव! मैं आपका हूँ। मेरे प्राण आप में ही लगे हैं और मेरा चित्त सदा आपका ही चिंतन करता है। यह जानकर आप जैसा उचित समझें, वैसा करें। भूतनाथ! मैं ये जानकर या अंजान में जो जप और पूजन आदि किया है, उसे समझकर दयासागर होने के नाते ही आप मुझपर प्रसन्न हों। उस उपवास व्रत से जो फल हुआ हो, उसी से सुखदायक भगवान शंकर मुझपर प्रसन्न हों। महादेव मेरे कुल में सदा आपका भजन होता रहे। जहाँ के आप इष्टदेव न हों, उस कुल में मेरा कभी जन्म न हो।
इस प्रकार प्रार्थना करने के पश्चात् शिवको पुष्पांजलि समर्पित करें।

• पुष्पांजलि: - खड़े होकर हाथ में पुष्प लेकर शिव जी को पुष्पांजलि अर्पित करें:-

shiv mahima

पुष्पांजलि के बाद ब्राह्मणों से तिलक और आशीर्वाद ग्रहण करें। तदंतर शिवरात्रि व्रत का विसर्जन करें।

• विसर्जन - तदंतर शंभु का विसर्जन करें। हाथ में अक्षत तथा पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये अक्षत तथा पुष्प शिवलिंग पर समर्पित करें।

om namah shivay - har har mahadev

अर्थ: महादेव! आपकी आज्ञा से मैं जो व्रत ग्रहण किया था, स्वामिन्। वह परम उत्तम व्रत पूर्ण हो गया । अत: अब उसका विसर्जन करता हूँ। देवेश्वर शर्व! यथाशक्ति किये गये इस व्रत से आप आज मुझपर कृपा करके संतुष्ट हों।

• क्षमा प्रार्थना - दोनों हाथ जोड़कर शिवजी से पूजा में जाने-अनजाने में हुई गलती,किसी वस्तु की अधिकता अथवा अल्पता के लिये क्षमा याचना करें।क्षमा याचना निम्न मंत्र के द्वारा करें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे ॥

अर्थ:देव! मैं आवाहन नहीं जानता,विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करने का ढ़ंग भी नहीं जानता। मुझे क्षमा करो। देव! सुरेश्वर!मैंने जो मंत्रहीन,क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है,वह सब आपके कृपा से पूर्ण हो ।