क्या हुआ जब रावण ने भोलेनाथ से पार्वती माता को माँगा :-

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क्या हुआ जब रावण ने भोलेनाथ से पार्वती माता को माँगा :-

एक बार की बात है रावण ने शिवजी की घोर तपस्या की जिससे शिव जी प्रसन्न हो गये। शिव जी ने प्रसन्न होकर रावण से कहा- “हे रावण! मैं तुझसे प्रसन्न हूँ। मांगों क्या मांगते हो।” तब रावण ने बहुत से वरदान और अन्य वस्तुएँ शिव जी से माँग ली, इतने में रावण की नजर शिव जी के पास बैठी पार्वती जी पर पड़ी । माँ पार्वती जी के रूप को देखकर रावण के मन में कलुषित विचार आ गये और उसने भोलेनाथ से माता पार्वती को माँगने का निश्चय किया।
रावण ने भोलेनाथ से कहा- “हे प्रभु! आपने तो मुझे सब कुछ दे दिया, लेकिन मुझे एक चीज और चाहिये।” तब शिवजी ने कहा- “माँगों क्या माँगते हो।”
शिवजी के वचन सुनकर रावण ने कहा- “हे प्रभु! हे भोलेनाथ! मुझी पार्वती जी चाहिये।” शिवजी तो ठहरे भोले भण्डारी, उन्होंने रावण को पार्वती जी भी दे दी।अब रावण पार्वती जी को ले कर चल पड़ा । इतने में नारद्जी आये और शिव जी की परेशानी को देख सब समझ गये। नारद जी चल दिये रावण के पास; थोड़ी दूर जाने पर नारद जी ने रावण को देखा। रावण को देखकर नारद जी ने कहा- “हे रावण ! इन्हें कहाँ ले जा रहे हो?” तब रावण ने उत्तर दिया:- “हे नारद जी! मैंने इन्हें भोलेनाथ से वरदान के रूप में माँग लिया है। ”
यह सुनकर नारद जी ने कहा- “ये पार्वती जी नहीं है। ये तो उनकी प्रतिछाया है। पार्वती जी को तो पहले हीं भोलेनाथ ने मय दानव के पास पाताल में छिपा दिया था। यदि तुम्हें असली पार्वती चाहिये तो पाताल जा।”
इतना सुनते हीं रावण पार्वती जी को वहीं छोड़कर पाताल की ओर चल पड़ा । पाताल में जाकर वह पार्वती जी को ढ़ूँढ़ने लगा। तभी सामने से उसे एक अत्यंत सुंदर स्त्री आती हुए दिखी। रावण ने उस स्त्री से पूछा – “हे सुंदरी!तुम कौन हो? अपना परिचय दो।” उस स्त्री ने कहा- “मैं मंदोदरी हूँ। मय दानव की पुत्री ।” रावण मंदोदरी की सुंदरता देखकर उस पर मोहित हो गया और कहने लगा- “चल! तू मेरे साथ चल ।” इतना कहकर वह पार्वती जी को भूलकर मंदोदरी को साथ ले कर चल दिया एवं उसी से विवाह कर लिया।