श्रावणपूर्णिमा को रक्षाबंधन की विधि
भगवान् श्रीकृष्ण बोले – महाराज ! प्राचीन काल में देवासुर-संग्राम में देवताओंद्वारा दांव पराजित हो गये | दु:खी होकर वे दैत्यराज बलि के साथ गुरु शुक्राचार्यजी के पास गये और अपनी पराजय का वृतांत बतलाया | इसपर शुक्राचार्य बोले- ‘दैत्यराज ! आपको विषाद नहीं करना चाहिये | दैववश काल की गति से जय-पराजय तो होती ही रहती हैं | इससमय वर्षभर के लिये तुम देवराज इंद्र के साथ संधि कर लो, क्योंकि इंद्र-पत्नी शचीने इंद्र को रक्षा-सूत्र बाँधकर अजेय बना दिया है | उसी के प्रभाव से दानवेन्द्र ! तुम इंद्र से परास्त हुए हो | एक वर्षतक प्रतीक्षा करो, उसके बाद तुम्हारा कल्याण होगा | अपने गुरु शुक्राचार्य के वचनों को सुनकर सभी दानव निश्चिन्त हो गये और समयकी प्रतीक्षा करने लगे | राजन ! यह रक्षाबंधन का विलक्षण प्रभाव हैं, इससे विजय, सुख, पुत्र, आरोग्य और धन प्राप्त होता है |
राजा युधिष्ठिर ने पूछा – भगवन ! किस तिथि में किस विधि से रक्षाबंधन करना चाहिये | इसे बतायें |
भगवान् श्रीकृष्ण बोले – महाराज ! श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन प्रात:काल उठकर शौच इत्यादि नित्य-क्रियासे निवृत्त होकर श्रुति-स्मृति-विधिसे स्नान कर देवताओं और पितरों का निर्मल जल से तर्पण करना चाहिये तथा उपाकर्म- विधिसे वेदोक्त ऋषियों का तर्पण भी करना चाहिये | ब्राह्मणवर्ग देवताओं के उद्देश्य से श्राद्ध करें | तदनंतर अपराह-काल में रक्षापोटलिका इसप्रकार बनाये- कपास अथवा रेशम के वस्त्र में अक्षत, गौर सर्षप, सुवर्ण, सरसों, दूर्वा तथा चंदन आदि पदार्थ रखकर उसे बाँधकर एक पोटलिका बना ले तथा उसे एक ताम्रपात्र में रख ले और विधिपूर्वक उसको प्रतिष्ठित कर ले | आँगन को गोबर से लीपकर एक चौकोर मंडल बनाकर उसके ऊपर पीठ स्थापित करे और उसके ऊपर मंत्रिसहित राजाको पुरोहित के साथ बैठना चाहिये | उससमय उपस्थित जन प्रसन्न-चित्त रहें | मंगल-ध्वनी करें | सर्वप्रथम ब्राह्मण तथा सुवासिनी स्त्रियाँ अर्ध्यादिके द्वारा राजा की अर्चना करे | अनन्तर पुरोहित उस प्रतिष्ठित रक्षापॉटलिको इस मन्त्र का पाठ करते हुए राजा के दाहिने हाथ में बाँधे –
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |
तेन त्वामभिबंध्नामि रक्षे मा चल मा चल ||
तत्पश्चात राजा को चाहिये कि सुंदर वस्त्र, भोजन और दक्षिणा देकर ब्राह्मणों की पुजाकर उन्हें संतुष्ट करे | यह रक्षाबंधन चारों वर्णों को करना चाहिये | जो व्यक्ति इस विधि से रक्षाबंधन करता है, वह वर्षभर सुखी रहकर पुत्र-पौत्र और धनसे परिपूर्ण हो जाता है |