स्कन्द – षष्ठी – व्रत की महिमा

सुमन्तु मुनि बोले – राजन ! अब मैं षष्ठी तिथि-कल्प का वर्णन करता हूँ | यह तिथि सभी मनोरथों को पूर्ण करनेवाली हैं | कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को फलाहारकर यह तिथिव्रत किया जाता हैं | यदि राज्यच्युत राजा इस व्रत का अनुष्ठान करे तो वह अपना राज्य प्राप्त कर लेता हैं | इसलिये विजय की अभिलाषा रखनेवाले व्यक्ति को इस व्रत का प्रयत्नपूर्वक पालन करना चाहिये |
यह तिथि स्वामि कार्तिकेय को अत्यंत प्रिय हैं | इसी दिन कृत्तिकाओं के पुत्र कार्तिकेय का आविर्भाव हुआ था | वे भगवान शंकर, अग्नि तथा गंगा के भी पुत्र कहे गये हैं | इसी षष्ठी तिथि को स्वामि कार्तिकेय देवसेना के सेनापति हुए | इस तिथिको व्रतकर घृत, दही, जल और पुष्पों से स्वामि कार्तिकेय को दक्षिण की ओर मुखकर अर्घ्य देना चाहिये |
अर्घ्यदान का मन्त्र इसप्रकार है –
सप्तर्षिदारज स्कन्द स्वाहापतिसमुद्भव |
रुद्रार्यमाग्निज विभो गंगागर्भ नमोऽस्तु ते |
प्रीयतां देवसेनानी: सम्पादयतु ह्रद्रतम् ||
ब्राह्मण को अन्न देकर रात्रि में फल का भोजन और भूमिपर शयन करना चाहिये | व्रत के दिन पवित्र रहे और ब्रह्मचर्य का पालन करें | शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष – दोनों षष्ठीयों को यह व्रत करना चाहिये | इस व्रत करने से भगवान स्कन्द की कृपा से सिद्धि, धृति, तुष्टि, राज्य, आयु, आरोग्य और मुक्ति मिलती है | जो पुरुष उपवास न कर सके, वह रात्रि-व्रत ही करे, तब भी दोनों लोकों में उत्तम फल प्राप्त होता हैं | इस व्रत को करनेवाले पुरुष को देवता भी नमस्कार करते हैं और वह इस लोक में आकर चक्रवर्ती राजा होता हैं | राजन ! जो पुरुष षष्ठी-व्रत के माहात्म्य का भक्तिपूर्वक श्रवण करता हैं, वह भी स्वामि कार्तिकेय की कृपा से विविध उत्तम भोग, सिद्धि, तुष्टि, धृति और लक्ष्मी को प्राप्त करता हैं | परलोक में वह उत्तम गति का भी अधिकारी होता है |