ब्राह्मण-पुत्री महादेवी की कथा
वैतालने कहा – राजन ! उज्जयिनी नाम की नगरी में चन्द्रवंशमें उत्पन्न महाबल नामसे विख्यात अत्यंत बुद्धिमान तथा वेदादि शास्त्रोंका ज्ञाता एक राजा निवास करता था | उसका स्वामिभक्त हरिदास नामका एक दूत था | हरिदास की पत्नी भ्क्तिमाला साधु पुरुषों की सेवामें तत्पर रहती थी | भक्तिमाला को सभी विद्याओं में पारंगत कमल के समान नेत्रवाली अत्यंत रूपवती एक कन्या उत्पन्न हुई, उसका नाम था महादेवी | एक दिन महादेवी ने अपने पिता हरिदास से कहा – ‘तात ! आप मुझे ऐसे योग्य पुरुषको दीजियेगा, जो गुणों में मुझसे भी अधिक हो, अन्य किसीको नहीं |’ अपनी पुत्रीकी बात सुनकर हरिदास बड़ा प्रसन्न हुआ और ‘ऐसा ही होगा’ – कहकर हरिदास राजसभा में आया और उसने राजाका अभिनन्दन किया | तदनंतर राजाने कहा – ‘हरिदास ! तुम मेरे ससुर तैलंग देश के राजा हरिश्चन्द्र के पास जाओ और उनका कुशल समाचार जानकर शीघ्र ही मुझे बताओ |’ हरिदास आज्ञा पाकर राजा हरिश्चन्द्र के पास गया और उसने उन्हें अपने स्वामी महाबलका कुशल-समाचार बतलाया | सारा कुशल-समाचार जानकार राजा हरिश्चंद्र अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने हरिदास से पूछा – ‘प्रभो ! आप विद्वान हैं, मुझे यह बतायें कि कलि का आगमन हो गया, यह कैसे मालुम होगा ?
हरिदास ने कहा – राजन ! जब वेदों की मर्यादाएँ नष्ट हो जायँ और वेदोक्त धर्म विपरीत दिखलायी देने लगे, तब कलिका आगमन समझना चाहिये, साथ ही कलि के प्रिय म्लेच्छगण कहे गये है | अधर्म ही जिसका मित्र है, ऐसे कलि के द्वारा सभी देवताओं को अपमानित किया गया हो, तब कलिका आगमन समझाना चाहिये | राजन ! पापकी स्त्रीका नाम है मृषा (असत्य), उसका पुत्र दुःख कहा गया है | दुःख की स्त्री है दुर्गति, जो कलियुग में घर-घरमें व्याप्त रहेगी | सभी राजा क्रोध के वशीभूत हो जायेंगे तथा सभी ब्राह्मण काम के दास हो जायेंगे | धनिक वर्ग लोभ के वशीभूत हो जायगा तथा शुद्र्जन महत्त्व को प्राप्त करेंगे | स्त्रियाँ लज्जा से रहित होंगी और सेवक स्वामी के ही प्राण हरण करनेवाले होंगे | पृथ्वी निष्फल (सत्त्वशून्य) हो जायगी | ऐसी स्थितिमें समझना चाहिये कि कलिका आगमन हो गया हैं, किन्तु कलियुग में जो मनुष्य भगवान् श्रीहरि की शरण में जायेंगे, वे ही आनन्द से रह पायेंगे, अन्य कोई नहीं |
यह सुनकर राजा हरिश्चन्द्र बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसे बहुत-सी दक्षिणा देकर बिदा किया तथा राजा महाबल को सम्पूर्ण समाचार देकर अपने महलमें चला आया और वह विप्र भी अपने शिबिर में आ गया | उसी समय एक बुद्धिकोविद नामक बुद्धिमान ब्राह्मण वहाँ आया और उसने अपनी विशिष्ट विद्याओं का हरिदास के सामने प्रदर्शन किया – उस ब्राह्मण ने मन्त्र जपकर देवीकी आराधना की और एक महान आश्चर्यजनक शीघ्रग नामक विमान प्रकटकर हरिदास को दिखलाया | उसकी विद्याओं से मुग्ध होकर हरिदास ने उसे अपनी कन्याके योग्य समझकर उसका वरण कर दिया |
हरिदास का पुत्र था मुकुन्द | वह विद्याध्ययन के लिये अपने गुरुके यहाँ गया था, जब वह अपने गुरुसे विद्याओं को पढ़ चूका तो गुरुदक्षिणा के लिये प्रार्थना करने लगा | गुरुने उससे कहा – ‘अरे मुकुंद ! सुनो, तुम गुरुदक्षिणा के रूपमें अपनी बहिन महादेवी मेरे दैवज्ञ पुत्र धीमान को समर्पित कर दो |’ ‘ठीक है‘ – ऐसा कहकर मुकुंद अपने घर आ गया |
इधर हरिदास की पत्नी भक्तिमाला ने द्रौणिशिष्य वामन नामक एक विप्रका जो शब्दवेधी बाण चलानेमें कुशल एवं शस्त्रविद्या का ज्ञाता था, उसकी विद्यासे प्रभावित होकर अपनी कन्याके लिये दक्षिणा, ताम्बुल आदिके द्वारा पूजित कर उसका वरण कर लिया |
समय आनेपर पिता, पुत्र तथा माताद्वारा वरण किये गये तीनों गुणवान ब्राह्मण महादेवी नामवाली उस क्न्याको प्राप्त करनेके लिये हरिदास के यहाँ आ पहुँचे | इसी बीच एक राक्षस अपनी मायासे उस कन्या महादेवी का हरण कर विन्ध्यपर्वत पर चला गया | यह समाचार जानकर ये तीनों कन्यार्थी दु:खी होकर रोने लगे | जब उनमेंसे गुरुपुत्र धीमान नामक दैवज्ञ विद्वान ब्राह्मण से कन्याका पता पूछा गया तो उसने बतलाया कि वह कन्या विन्ध्यपर्वतपर राक्षसद्वारा हरण कर ले जायी गयी है | तदनंतर उस कन्या की प्राप्ति के लिये द्वितीय बुद्धिकोविद नामक ब्राह्मण ने अपने द्वारा बनाये गये आकाशचारी विमानपर उन दोनों विप्रोंको बैठाकर विन्ध्यपर्वतपर पहुचाया | तब शब्दवेधी बाणों को चलाने में निपुण वामन नामक तीसरे ब्राह्मण ने धनुषपर बाण का संधान किया उअर बाण से उस राक्षस को मार डाला | वे तीनों कन्या महादेवी को प्राप्त कर उसी विमान में बैठकर उज्जयिनी में वापस लौट आये |
वहाँ पहुंचकर तीनों ब्राह्मण अपने-अपने कार्यका महत्त्व बताते हुए कन्याके वास्तविक अधिकारी होनेके लिये परस्परमें विवाद करने लगे, यह निर्णय नहीं हो सका कि कन्याका विवाह किसके साथ हो |
वैतालने राजा विक्रम से पूछा – राजन ! आप बतलाये कि इन तीनों में विवाह का अर्थात कन्या प्राप्त करने का अधिकारी कौन है ?
राजा विक्रमादित्य ने कहा – जिस विद्वान गुरुके पुत्र ज्योतिषी ब्राह्मण ने कन्यका यह पता बताया कि वह राक्षसद्वारा चुराकर विन्ध्यपर्वत पहुंचायी गयी है, वह ब्राह्मण कन्याके लिये पितृतुल्य है और जिस दुसरे ब्राह्मण बुद्धिकोविद ने अपने मंत्रबलद्वारा उत्पन्न विमानसे महादेवी नामकी कन्या को यहाँ पहुँचाया, वह भाईके समान हैं, किन्तु जिस वामन नामक ब्राह्मण युवक ने शब्दवेधी बाणों से राक्षस के साथ युद्ध कर उसे मार गिराया, वही वीर ब्राह्मण इस कन्या को प्राप्त करनेका योग्य अधिकारी है |