तिलकव्रत के माहात्म्य में चित्रलेखा का चरित्र
राजा युधिष्ठिर ने पूछा – भगवन ! ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गौरी, गणपति, दुर्गा, सोम, अग्नि तथा सूर्य आदि देवताओं के व्रत शास्त्रों में निर्दिष्ट हैं, उन व्रतों का वर्णन आप पतिपदादि क्रम से करें | जिस देवता की जो तिथि है तथा जिस तिथि में जो कर्तव्य है, उसे आप पूरी तरह बतलायें |
भगवान् श्रीकृष्ण बोले – महाराज ! चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की जो प्रतिपदा होती है, उस दिन स्त्री अथवा पुरुष नदी, तालाब या घरपर स्नान कर देवता और पितरों का तर्पण करे | फिर घर आकर आटे की पुरुषाकर संवत्सर की मूर्ति बनाकर चन्दन, पुष्प, धुप, दीप, नैवेध्य आदि उपचारों से उसकी पूजा करे | ऋतू तथा मासों का उच्चारण करते हुए पूजन तथा प्रणाम कर संवत्सर की प्रार्थना करे और –
‘संवत्सरोऽसि परिवत्सरोऽसीदावत्सरोऽऽद्वत्सरोऽसि वत्सरोऽसि |
उषसस्ते कल्पन्तामहोरात्रास्ते कल्पन्तामर्धमासास्ते कल्पन्ता मासास्ते कल्पन्तामृतवस्ते कल्पन्ता संवत्सरस्ते कल्पताम |
प्रेत्या एत्यै सं चांज प्र च सारय | सुपर्णाचिदसि तया देवतयाऽगिरस्वद ध्रुव: सीद ||’
यह मन्त्र पढकर वस्र से प्रतिमा को वेष्टित करे | तदनंतर फल, पुष्प, मोदक आदि नैवेद्य चढाकर हाथ जोडकर प्रार्थना करे – ‘भगवान् ! आपके अनुग्रह से मेरा वर्ष सुखपूर्वक व्यतीत हो |’ यह कहकर यथाशक्ति ब्राह्मण को दक्षिणा दे और उसी दिन से आरम्भ कर ललाट को नित्य चन्दन से अलंकृत करे | इसप्रकार स्त्री या पुरुष इस व्रतके प्रभाव से उत्तम फल प्राप्त करते है | भुत, प्रेत, पिशाच, ग्रह, डाकिनी और शत्रु उसके मस्तक में तिलक देखते ही भाग खड़े होते है |
इस सम्बन्ध में मैं एक इतिहास कहता हूँ – पूर्व कालमे शत्रुंजय नाम के एक राजा थे और चित्रलेखा नाम की अत्यंत सदाचारिणी उनकी पत्नी थी | उसीने सर्वप्रथम ब्राह्मणों से संकल्पपूर्वक इस व्रत को ग्रहण किया था | इसके प्रभाव से बहुत अवस्था बीतनेपर उनको एक पुत्र हुआ | उसके जन्म से उनको बहुत आनंद प्राप्त हुआ | वह रानी सदा संवत्सरव्रत किया करती और नित्य ही मस्तक में तिलक लगाती | जो उसको तिरस्कृत करने की इच्छा से उसके पास आता, वह उसके तिलक को देखकर पराभूत-सा हो जाता | कुछ समय के बाद राजा को उन्मत्त हाथीने मार डाला और उनका बालक भी सिर की पीड़ा से मर गया | तब रानी अति शोकाकुल हुई | धर्मराज के किंकर (यमदूत) उन्हें लेने के लिये आये | उन्होंने देखा कि तिलक लगाये चित्रलेखा रानी समीप में बैठी है | उसको देखते ही वे उलटे लौट गये | यमदूतों के चले जानेपर राजा अपने पुत्र के साथ स्वस्थ हो गया और पुर्वकर्मानुसार शुभ भोगों का उपयोग करने लगा | महाराज ! इस परम उत्तम व्रत का पूर्वकाल में भगवान् शंकर ने मुझे उपदेश किया था आर हमने आपको सुनाया | यह तिलकवत समस्त दु:खो को हरनेवाला है | इस व्रत को जो भक्तिपूर्वक करता है, वह चिरकालपर्यन्त संसार का सुख भोगकर अंत में ब्रह्मलोक को प्राप्त होता है |