दामोदर भगवान्
एक दिन माता यशोदा भगवान को दूध पिला रहीं थीं तभी उन्हें याद आया कि रसोई में दूध चूल्हे पर चढ़ाया हुआ था, अब तक ऊबल गया होगा।
माता ने लाल को गोद से उतारा और उबलते दूध को आग से उतारने के लिये लपकीं।
श्रीकृष्ण ने रोष-लीला प्रकट की और मन ही मन बोलने लगे कि मेरा पेट अभी भरा नहीं और मैया मुझे छोड़कर रसोई में चली गईं।
बस फिर क्या था, भगवान ने सा्मने दही रखे हुये मिट्टी के बर्तन को पत्थर मार कर तोड़ दिया जिससे सारे कमरे मंय दही बिखर गया।
परन्तु इससे भी बालकृष्ण का गुस्सा शान्त नहीं हुआ। उन्होंने कमरे में रखे सभी दूध और दही की मटकियों को तोड़ डाला।
इसके बाद छींके पर रखे हुये मक्खन व दही के मटकों को तोड़ने के लिये एक ओखली के ऊपर चढ़ गये।
उधर यशोदा मैय्या जब दूध संभाल कर मुड़ीं तो वह यह देख कर हैरान हो गयीं कि दरवाज़े में से दूध-दही-मक्खन बह रहा है।
माता को देखकर श्रीकृष्ण ओखली से कूद कर सरपट भागे। अपने घर में माखन चोरी की श्रीकृष्ण की यह पहली लीला थी।
माता यशोदा श्रीकृष्ण को पकड़ने के लिये उनके पीछे दौड़ीं।
मैय्या तो माँ के वात्सल्य से भगवान को बालक ही समझ रही थी व उन्होंने सोचा कि आज कन्हैया को सबक सिखाना ही होगा।
अतः छड़ी उठाई और उनके पीछे-पीछे भागीं। यह निश्चित है कि सर्वशक्तिमान–अनन्त गुणों से विभूषित भगवान यदि अपने आप को न पकड़वायें तो कोई उनको नहीं पकड़ सकता।
यदि वे अपने आप को न जनायें तो कोई उन्हें जान भी नहीं सकता।
माता यशोदा का परिश्रम देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी चाल को थोड़ा धीमा किया।
माता ने उन्हें पकड़ लिया और वापिस नन्द-भवन में वहीं पर ले आयीं जहाँ ऊखल पर चढ़ कर भगवान बन्दरों को माखन बाँट रहे थे।
सजा देने की भावना से माता यशोदा श्रीकृष्ण को ऊखल से बाँधने लगीं।
जब रस्सी से बाँधने लगीं तो रस्सी दो ऊँगल छोटी पड़ गयी।
माता रस्सी पर रस्सी जोड़ती जाती परन्तु भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य चमत्कारी लीला से हर बार रस्सी दो ऊँगल छोटी पड़ जाती।
सारे गोकुल की रस्सियाँ आ गयीं किन्तु भगवान नहीं बंध पाये, रस्सी हमेशा दो ऊँगल छोटी रही।
भगवान ने अपनी इस लीला के माध्यम से हमें बताया कि वे छोटे से गोपाल के रूप में होते हुये भी अनन्त हैं साथ ही भक्त-वत्सल भी हैं।
अपनी वात्सल्य रस की भक्त माता यशोदा की इच्छा पूरी करने के लिये वे लीला-पुरुषोत्तम जब बँधे तो पहली रस्सी से ही बँध गये, बाकी रस्सियों का ढेर यूँ ही पड़ा रहा।
इस लीला के बाद से ही भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम हो गया दामोदर।