गणेशजी का विघ्न-अधिकार तथा उनकी पूजा-विधि

राजा शतानीक ने सुमन्तु मुनि से पूछा – विप्रवर ! गणेशजी को गणों का राजा किसने बनाया और बड़े भाई कार्तिकेय के रहते हुए ये कैसे विघ्नों के अधिकारी हो गये ?
सुमन्तु मुनिने कहा – राहन! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है | जिस कारण ये विघ्नकारक हुए हैं और जिन विघ्नों को करनेसे इस पदपर इनकी नियुक्ति हुई, वह मैं कह रहा हूँ, उसे आप एकाग्रचित्त होकर सुनें | पहले कृतयुग में प्रजाओं की जब सृष्टि हुई तो बिना विघ्न-बाधा के देखते-ही-देखते सब कार्य सिद्ध हो जाते थे | अत: प्रजा को बहुत अहंकार हो गया | क्लेश-रहित एवं अहंकार से परिपूर्ण प्रजा को देखकर ब्रह्माने बहुत सोच-विचार करके प्रजा-समृद्धि के लिये विनायक को विनियोजित किया | अत: ब्रह्मा के प्रयास से भगवान शंकर ने गणेश को उत्पन्न किया और उन्हें गणों का अधिपति बनाया |
राजन ! जो प्राणी गणेश की बिना पूजा किये ही कार्य आरम्भ करता है उनके मुझसे सुनिये – वह व्यक्ति स्वप्न में अत्यन्त गहरे जल में अपने को डूबते, स्नान करते हुए या केश मुड़ाये देखता है | काषाय वस्त्र से आच्छादित तथा हिंसक व्याघ्रादि पशुओं पर अपनेको चढ़ता हुआ देखता हैं | अन्त्यज, गर्दभ तथा ऊँट आदिपर चढ़कर परिजनों से घिरा वह अपने को जाता हुआ देखता हिन् | जो मानव केकड़ेपर बैठकर अपने को जल की तरंगो के बीच गया हुआ देखता है और पैदल चल रहे लोगों से घिरकर यमराज के लोक को जाता हुआ अपने को स्वप्न में देखता हैं, वह निश्चित ही अत्यंत दु:खी होता हैं |
जो राजकुमार स्वप्न में अपने चित्त तथा आकृति को विकृत रुपमें अवस्थित, करवीर के फूलों की मालासे विभूषित देखता हैं, वह उन भगवान विघ्नेश के द्वारा विघ्न उत्पन्न कर देने के कारण पूर्ववंशानुगत प्राप्त राज्य को प्राप्त नहीं कर पाता | वैश्य को व्यापार में लाभ नहीं प्राप्त होता है और कृषक को कृषि-कार्य में पूरी सफलता नहीं मिलती | इसलिए राजन ! ऐसे अशुभ स्वप्नों को देखनेपर भगवान गणपति की प्रसन्नता के लिये विनायक-शांति करनी चाहिये |

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन, बृहस्पतिवार और पुष्य नक्षत्र होनेपर गणेशजी को सर्वोषधि और सुगन्धित द्रव्य-पदार्थो से उपलिप्त करे तथा उन भगवान विघ्नेश के सामने स्वयं भद्रासनपर बैठकर ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराये | तदनन्तर भगवान शंकर, पार्वती और गणेश की पूजा करके सभी पितरों तथा ग्रहों की पूजा करे | चार कलश स्थापित कर उनमें सप्तमृत्तिका, गुग्गुल और गोरोचन आदि द्रव्य तथा सुगन्धित पदार्थ छोड़े | सिंहासनस्थ गणेशजी को स्नान कराना चाहिये | स्नान कराते समय इन मंत्रो का उच्चारण करें –
सहस्त्राक्षं शतधारमृषिभि: पावनं कृतम |
तेन स्वामभिषिमस्चामि पावमान्य: पुनन्तु ते ||
भगं टे वरुणो राजा भगं सूर्यो बृहस्पति: |
भगमिन्द्रक्ष वायुक्ष भगं सप्तर्षयो ददु: ||
यत्ते केशेषु दौर्भाग्यं सीमन्ते यश्च मूर्धनि |
ललाटे कर्णयोरक्षणोरापस्तदअन्तु टे सदा ||
इन मन्त्रों से स्नान कराकर हवन आदि कार्य करे | अनन्तर हाथ में पुष्प, दूर्वा तथा सर्षप (सरसों) लेकर गणेशजी की माता पार्वती को तीन-चार बार पुष्पांजलि प्रदान करनी चाहिये |मंत्र उच्चारण करते हुए इसप्रकार प्रार्थना करनी चाहिये –
रूपं देहि यशो देहि भगं भगवति देहि में |
पुत्रान देहि धनं देहि सर्वान कार्माश्च देहि में |
अबलां बुद्धिं में देहि धरायां ख्यातिमेव च ||
अर्थात ‘हे भगवति ! आप मुझे रूप, यश, तेज, पुत्र तथा धन दें, आप मेरी सभी कामनाओं को पूर्ण करें | मुझे अचल बुद्धि प्रदान करें और इस पृथ्वीपर पसिद्धि दें |’
प्रार्थना के पश्च्यात ब्राह्मणों को तथा गुरुको भोजन कराकर उन्हें वस्त्र-युगल तथा दक्षिणा समर्पित करे | इसप्रकार भगवान गणेश तथा ग्रहों की पूजा करनेसे सभी कर्मों का फल प्राप्त होता है और अत्यन्त श्रेष्ठ लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है | सूर्य, कार्तिकेय और विनायक का पूजन एवं तिलक करने से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है |