महाराज विक्रमादित्य के चरित्र का उपक्रम

सूतजी बोले – शौनक ! चित्रकूट पर्वत के आस-पास के क्षेत्र (प्राय: आजके पुरे बुन्देलखण्ड एवं बघेलखंड) में परिहार नामका एक राजा हुआ | उसने रमणीय कलिंजर नगर में रहकर अपने पराक्रम से बौद्धों को परास्त कर पूरी प्रतिष्ठा प्राप्त की | राजपूताने के क्षेत्र (दिल्ली नगर) में चपह्यानि –चौहान नामक राजा हुआ | उसने अति सुंदर अजमेर नगर में रहकर सुखपूर्वक राज्य किया | उसके राज्य में चारों वर्ण स्थित थे | आनर्त (गुजरात) देशमें शुक्ल नामक राजा हुआ, उसने द्वारका को राजधानी बनाया |
शौनकजीने कहा – हे महाभाग ! अब आप अग्रिवंशी राजाओं का वर्णन करे |
सूतजी बोले – ब्राह्मणों ! इससमय मैं योगनिद्रा के वश में हो गया हूँ | अब आपलोग भी भगवान् का ध्यान करें | अब मैं थोडा विश्राम करूँगा | यह सुनकर मुनिगण भगवान् विष्णु के ध्यान में लीन हो गये | लम्बे अंतराल के बाद ध्यान से उठकर सूतजी पुन: बोले – महामुने ! कलियुग के सैतीस सौ दस वर्ष व्यतीत होनेपर प्रमर नामक राजाने राज्य करना प्रारम्भ किया | उन्हें महामद (मुहम्मद) नामक पुत्र हुआ, जिसने पिताके शासन-काल के आधे समयतक राज्य किया | उसे देवापि नामक पुत्र हुआ, उसने भी पिताके ही तुली वर्षोतक राज्य किया | उसे देवदूत नामक पुत्र हुआ, उसके गंधर्वसेन नामक पुत्र हुआ, जिसने पचास वर्षतक राज्य किया | वह अपने पुत्र शंख का अभिषेक कर वन चला गया | शंख ने तीस वर्षतक राज्यभार सँभाला | उसीसमय देवराज इंद्र ने वीरमती नामक एक देवांगना को पृथ्वीपर भेजा | शंख ने वीरमतीसे गंधर्वसेन नामक पुत्ररत्न को प्राप्त किया | पुत्रके जन्म-समयमे आकाशसे पुष्पवृष्टि हुई और देवताओं ने दुन्दुभी बजायी | सुखप्रद शीतल-मंद वायु बहने लगी | इसीसमय अपने शिष्योंसहित शिवदृष्टि नामके एक ब्राह्मण तपस्या के लिये वनमें गये और शिवकी आराधना से वे शिवस्वरूप हो गये |
तीन हजार वर्ष पूर्ण होनेपर जब कलियुग का आगमन हुआ, अब शकों के विनाश और आर्यधर्म की अभिवृद्धि के लिये वे ही शिवदृष्टि गुहाको की निवासभूमि कैलास से भगवान् शंकर की आज्ञा पाकर पृथ्वीपर विक्रमादित्य नामसे प्रसिद्ध हुए | ये अपने माता-पिताको आनंद देनेवाले थे | वे बचपन से ही महान बुद्धिमान थे | बुद्धिविशारद विक्रमादित्य पाँच वर्ष की ही बाल्यावस्था में तप करने वनमें चले गये | बारह वर्षोतक प्रयत्नपूर्वक तपस्या कर वे ऐश्वर्य-सम्पन्न हो गये | वाढ वर्षोतक प्रयत्नपूर्वक तपस्या कर वे ऐश्वर्य-सम्पन्न हो गये | उन्होंने अम्बावती नामक दिव्य नगरी में आकर बत्तीस मूर्तियों से समन्वित, भगवान् शिवद्वारा अभिरक्षित रमणीय और दिव्य सिंहासन को सुशोभित किया | भगवती पार्वती के द्वारा प्रेषित एक वैताल उनकी रक्षा में सदा तत्पर रहता था | उस वीर राजाने महाकालेश्वर में जाकर देवाधिदेव महादेव की पूजा की और अनेक व्यूहों से पूरिपूर्ण धर्म-सभाका निर्माण किया | जिस्समे विविध मणियों से विभूषित अनेक धातुओं के स्तम्भ थे | शौनकजी ! उसने अनेक लताओं से पूर्ण, पुष्पान्वीत स्थानपर अपने दिव्य सिंहासन को स्थापित किया | उसने वेद-वेदांग पारंगत मुख्य ब्राह्मणों को बुलाकर विधिवत उनकी पूजाकर उनसे अनेक धर्म-गाथाएँ सुनी | इसी समय वैताल नामक देवता ब्राह्मण का रूप धारण कर ‘आपकी जय हो’, इसप्रकार कहता हुआ वहाँ आया और उनका अभिवादन कर आसनपर बैठ गया |