प्रेम की देवी श्रीराधा
एक बार की बात है श्री श्यामसुंदर माता अम्बिका के मंदिर गए, और उनसे प्रार्थना करने लगे।
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हे अंबिके ! आप मुझ पर कृपा करो..
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माँ बोली- गोबिंद आप यहाँ आ गए हो, सायं में यशोदा मैया आपकी इंतज़ार कर रही होंगी...
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तो मैंने आपका एक रूप मैया के पास स्थापित कर दिया है, ताकि आपकी माँ आपके विरह में रोवे ना।
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आप बताओ कन्हैया क्या प्रार्थना है आपकी ?
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कन्हैया बोले- माँ ! एक बात बताओ "सारे विश्व में सबसे कोमल वस्तु कौन सी है" ?
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माँ मुस्कुराके बोली... कन्हैया ! इस दुनिया में सबसे कोमल दो वस्तु हैं।
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एक श्री राधारानी और दूसरे आप (श्री कृष्ण)
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कन्हैया आश्यर्चजनित अवस्था में बोले...
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माँ ! यह तो मैं जानता हूँ " श्री राधारानी" अति कोमल हैं। पर मैं भी कोमल हूँ यह मुझे आज पता चला है ।
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आज आपसे एक विनय करता हूँ मुझे आशीर्वाद दीजिए माँ
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हे अम्बिका माँ ! एक आशीर्वाद दीजिए
जैसा आपने कहा के मैं अति कोमल हूँ, तब मुझे आशीर्वाद दो "मैं जो चाहूँ वहीं बन जाऊँ"।
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माँ बोली.. जाओ कन्हैया आपको दे दिया मैंने आशीर्वाद "आप जो चाहो वो बन जाओगे" ।
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कन्हैया अति प्रसन्न हुए और अपने गृह चले गए"।
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तब कन्हैया ठीक श्रीराधा रानी के सम्मुख पहुँच गए।
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कन्हैया, श्री राधारानी के आभूषणों की तरफ़ देखते हैं, जो श्री ललिता जी सज़ा रही थीं श्री राधारानी को।
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तभी श्रीकृष्ण सोचे "यह आभूषण कितने कठोर होते हैं, जो मेरी श्रीराधा रानी को कष्ट देते होंगे l
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वो इन कठोर आभूषणों को पहन ज़रूर लेती हैं, केवल और केवल मेरी प्रसन्नता के लिए के मैं सुखी रहूँ ।
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परंतु इतनी सुंदर कोमल श्रीराधा रानी को आभूषणों की क्या आवश्यकता है।
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यह देखो... यह "कर्ण" झुमका कैसे इनके कोमल कानों को कष्ट दे रहा है l
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गले में लम्बा हार तो देखो। लम्बा हार पहन के कैसे झुकी झुकी चल रही हैं मेरी कोमलांगी श्रीराधा,
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साड़ी तो देखो... कितनी भारी, नथ बेसर कोमल नासिका को जकड़ कर बैठी हैं l
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तब श्रीकृष्ण सोच रहे हैं.. अम्बिका माँ ने मुझे कहा है मैं अत्यंत कोमल हूँ...
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इस पूरी सृष्टि में.. और मैंने उनसे वरदान भी ले लिया है के मैं जो चाहूँ वो बन जाऊँ।
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तब कन्हैया ने उसी समय अपने एक रूप से
श्रीराधा रानी के सारे आभूषण बन गए,
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उनकी साड़ी लहंगा कँचुकि, सिंदूर, मिहावर, नथ बेसर, करधानि अँगूठी आदि सब कन्हैया स्वयं बन गए। क्यूँकि वो अति कोमल हैं l
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और श्रीराधा रानी को कोमलता लगे इन आभूषणों से जो मेरे रूप से बने हैं।
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कन्हैया सब आभूषण स्वयं बन गए और दूसरे रूप में ललिता जी से बोले...
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है प्यारी सखी ललीते! "आप श्रीरानी को यह आभूषण पहनाओ जो अत्यंत कोमल है"
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श्रीराधा रानी अट्टहास करतीं हुई बोलीं..
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ललिता जी! "नंदगाओं के आभूषण कोमल भी होते हैं क्या ?
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ललिता जी ने सारे आभूषण ले लिए और श्रीराधा रानी को पहनाने लगी।
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तब एक एक आभूषण से " श्री राधा" नाम के ध्वनि होने लगी।
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तब श्रीराधा रानी बोली... "यह आभूषण मेरा नाम क्यूँ गा रहे हैं ललीते" ?
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कन्हैया जानते थे के यह सब आभूषण वो स्वयं बने हैं, तभी आभूषणों, वस्त्रादि से श्रीराधा श्रीराधा की धुनी हो रही है।
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एक एक आभूषण और वस्त्रादि जो अत्यंत कोमल थे श्री राधारानी को अत्यंत सुख पहुँचा रहे थे l
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श्रीराधा रानी बोली... ललिता जी ! पहली बार आभूषण, वस्त्रादि मुझे "श्यामसुंदर का आलिंगन सुख पहुँचा रहे हैं l
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कन्हैया अति प्रसन्न हुए के मेरी कोमलांगी को मैं स्वयं अपनी कोमल देह से वस्त्र आभूषण बनकर उन्हें सुखी कर दिया ।
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ऐसा क्यूँ हुआ ?... क्यूँकी श्रीकृष्ण श्रीराधा रानी के आभूषण वस्त्र कोमल बने ?
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क्यूँकि एक दिन "श्री चित्रा सखी राधारानी की वेणी में फूल का गज़रा बाँध रही थी और सखी गुणमंजरी फूलों का गज़रा बना बना के श्री चित्रा को दे रही थी...
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और चित्रा श्रीराधा रानी की वेणी में बाँध रही थी और यह दृश्य श्रीकृष्ण झाड़ियों में
छिप के देख रहे थे l
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तभी श्रीराधा रानी की वेणी में जैसे ही सखी चित्रा जी पुष्प बाँधती, तभी श्रीराधा रानी अपने केशों को फैलाकर सारे फूलों के गज़रे को धरती पर फैला देती l
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तब चित्रा जी कहती... यह क्या कर रही हो श्रीराधा रानी ?
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आप सारे पुष्पों की माला गज़रा जो हम आपको पहना रही हैं, आप सारे केश फैला कर क्यूँ गिरा रही हो ?
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श्रीराधा रानी के आँखों में आँसू आ गए
और यह सब श्रीकृष्ण देख रहे थे..
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श्रीराधा रानी सखी चित्रा की हाथ पकड़कर बोली.. "सखी ! मैं तुम पर वारी वारी जाती हूँ परंतु
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"जब तुम मेरे केश में यह फूल की माला डाल उन्हें बाँधती हो, तब मुझे अत्यंत वेदना होती है l
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क्योंकि यह "काले केश मुझे श्यामसुंदर के वर्ण की याद दिला देते हैं और जब तुम मेरे श्यामसुंदर रूपी केश को "फूलों से बाँधने का प्रयास करती हो, तब मैं दुखी हो जाती हूँ...
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कि तुम कैसे मेरे श्यामसुंदर रूपी केश को बाँध सकती हो। मैं अपने श्याम को बँधता नहीं देख सकती l
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बस तभी ही "अपने सारे केश शिंगार को पल में ख़राब कर सब केश को खोल देती हूँ के मेरे कन्हैया को कोई ना बांधे...
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चाहे मैं ही क्यूँ न। एसी थी श्रीराधा रानी का प्रेम। प्रेम की देवी श्रीराधा रानी की सदा जय हो।