रथसप्तमी तथा भगवान् सूर्य की महिमा का वर्णन
ब्रह्माजी बोले – हे रूद्र ! माघ मास के शुक्ल पक्ष की षष्टि तिथि को उपवास करके गंधादि उपचारों से भगवान् सूर्यनारायण की पूजाकर रात्रिमें उनके सम्मुख शयन करे | सप्तमी में प्रात:काल विधिपूर्वक पूजा करे और उदारतापूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराये | इसप्रकार एक वर्षतक सप्तमी को व्रतक्र रथयात्रा करे | कृष्णपक्ष में तृतीया तिथि को एकभुक्त, चतुर्थी को नक्तव्रत, पंचमी को अयाचितव्रत (बिना किसीसे माँगे जो भोजन मिल जाय, उसे अयाचित – व्रत कहते है |), षष्ठी को पूर्ण उपवास तथा सप्तमी को पारण करे | रथस्थ भगवान् सूर्य की भलीभाँति पूजाकर सुवर्ण तथा रत्नादि से अलंकृत तथा टोरं, पताकादि से सुसज्जित रथ में सूर्यनारायण की प्रतिमा स्थापित कर ब्राह्मण की पूजा करके उसका दान कर दे | स्वर्ण के अभाव में चाँदी, ताम्र, आटे आदि का रथ बनाकर आचार्य को दान करे | महादेव ! यह
माघ-सप्तमी बहुत उत्तम तिथि हैं, पापों का हरण करनेवाली इस रथसप्तमी को भगवान् सूर्य के निमित्त किया गया स्नान, दान, होम, पूजा आदि सत्कर्म हजार गुना फलदायक हो जाता है | जो कोई भी इस व्रत को करता है, वह अपने अभीष्ट मनोरथ को प्राप्त करता है | इस सप्तमी के माहात्म्य का भक्तिपूर्वक श्रवण करनेवाला व्यक्ति ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पा जाता है |
सुमन्तु मुनिने कहा – राजन ! इसप्रकार रथयात्रा का विधान बताकर ब्रह्माजी अपने लोक को चले गए और रुद्र्देवता भी अपने धाम चले गये | अब आप और क्या सुनना चाहते है, यह बतायें |
राजा शतानीक ने कहा – हे महाराज ! सूर्यदेव के प्रभाव का मैं कहाँतक वर्णन करूं ! उन्होंने अनुग्रह से युधिष्ठिर आदि मेरे पितामहों को सभी प्रकार दिव्य भोजन प्रदान करनेवाला अक्षय पात्र मिला था, जिससे वनमें भी वे ब्राह्मणों को संतुष्ट करते थे | जिन भगवान् सूर्य की देवता, ऋषि, सिद्ध तथा मनुष्य आदि निरंतर आराधना करते रहते हैं उन भगवान् भास्कर के माहात्म्य को मैंने अनेक बार सुना हैं, पर उनका माहात्म्य सुनते-सुनते मुझे तृप्ति नहीं होती | जिनसे सम्पूर्ण विश्व उत्पन्न हुआ है तथा जिनके हउदय होने से ही सारा संसार चेष्टावान होता है, जिसके हाथों से लोकपूजित ब्रह्मा और विष्णु तथा ललाट से शंकर उत्पन्न हुए है, उनके प्रभाव का वर्णन कौन कर सकता हैं ? अब मैं यह सुनना चाहता हूँ कि जिस मन्त्र, स्तोत्र, दान, स्नान, जप, पूजन, होम, व्रत तथा उपवासादि कर्मोकि करनेसे भगवान् सूर्य प्रसन्न होकर सभी कष्टों को निवृत्त करते हैं और संसार-सागर से मुक्त करते हैं, आप उन्हीं उत्तम मन्त्र, स्तोत्र, रहस्य, विद्या, पाठ, व्रत आदि को बताएं, जिनसे भगवान् सूर्य का कीर्तन हो और जिव्हा धन्य हो जाय | क्योंकि वहीँ जिव्हा धन्य है जो भगवान् सूर्य का स्तवन करती है | सूर्य की आराधना के बिना यह शरीर व्यर्थ है | एक बार भी सूर्यनारायण को प्रणाम करनेसे प्राणी का भवसागर से उद्धार हो जाता है |
रत्नों का आश्रय मेरुपर्वत, आश्चर्यो का आश्रय आकाश, तीर्थो का आश्रय गंगा और सभी देवताओं के आश्रय भगवान् सूर्य हैं | मुने ! इसप्रकार अनंत गुणोंवाले भगवान् सूर्य के माहात्म्य को मैंने बहुत बार सुना हैं | देवगण भी भगवान् सूर्य की ही आराधना करते हैं, यह भी मैंने सुना हैं | अब मेरा यही दृढ़ संकल्प है कि सम्पूर्ण प्राणियों के ह्रदय में निवास करनेवाले तथा स्मरणमात्र से समस्त पाप-तापों को दूर करनेवाले भगवान् सूर्य की भक्तिपूर्वक उपासना कर मैं भी संसार से मुक्त हो जाऊं |