रोगह्य एवं महाश्वेतवार – व्रत की विधि

ब्रह्माजी बोले – दिंडीन ! यदि आदित्यवार को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र पड़े तो उसे रोगह्यवार कहते हैं | यह सम्पूर्ण रोगों एवं भयों को दूर करनेवाला हैं | इस दिन जो गंध, पुष्प आदि उपचारों से भगवान् सूर्यनारायण का पूजन करता हैं, वह सभी रोगों से मुक्त हो जाता हैं तथा सूर्यलोक को प्राप्त होता हैं | मंदार के पत्रों का दोना बनाकर उसी में उसी के फुल रखकर रात्रि में भगवान् सूर्यनारायण के सामने रख देना चाहिये तथा प्रात:काल उठकर उन्हीं फूलों से उनका पूजन करना चाहिये | तदनन्तर खीर का भोजन करके व्रत की समाप्ति करनी चाहिये |
दिंडीन ! यदि सूर्यग्रहण के दिन रविवार हो तो उसे महाश्वेतवार कहते हैं, वह भगवान् सूर्य को बहुत प्रिय है | उस दिन उपवास करके पवित्रता के साथ गंध-पुष्पादि उपचारों से भक्तिपूर्वक सूर्यनारायण का पूजन करके महाश्वेता-मन्त्र का जप करे | तदनंतर महाश्वेता की पूजा करके सूर्यनारायण की पूजा करने का विधान है | महाश्वेता की स्थापना करके गंध-पुष्प आदि से उनका पूजन करे तथा उन्हीं के सम्मुख एक वेदिपर सूर्यनारायण की स्थापना कर उनकी पूजा आदि करे | तत्पस्च्यात स्नान करके घृतसहित तिलों का हवन करे | ग्रहण के समय महाश्वेता-मन्त्र का जप करता रहे और ग्रहण के समाप्त होने के पश्चात पुन: स्नान करके महाश्वेता तथा ग्रहाधिपति भगवान् सूर्य का पूजन करे | ब्राह्मणों से पुराण सुनकर उन्हें भोजन कराये तथा यथाशक्ति दक्षिणा दे | उसके बाद स्वयं मौन होकर भोजन करे | इस दिन किये हुए स्नान, दान, जप, होम आदि कर्म अनंत फल देते हैं |
दिंडीन ! सम्पूर्ण पापों और भयों को दूर करनेवाले सूर्यनारायण के इन द्वादश वारों का मैंने जो वर्णन किया हैं, इसे जो मनुष्य पढ़ता है अथवा सुनता है, वह भगवान् सूर्य का प्रिय हो जाता हैं और जो इन व्रतों को नियमपूर्वक करता है, वह धर्म, अर्थ, काम और चन्द्रमा के समान कान्ति, सूर्य के समान प्रभा, इंद्र के समान पराक्रम तथा स्थायी लक्ष्मी को प्राप्त करता हैं, तदनंतर अंत में वह शिवलोक को चला जाता हैं |