सरस्वती व्रत का विधान और फल
राजा युधिष्ठिर ने पूछा – भगवन ! किस व्रत के करने से वाणी मधुर होती है ? प्राणीको सौभाग्य प्राप्त होता है ? विद्या में अतिकौशल प्राप्त होता है ?, पति -पत्नी का और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता तथा दीर्घ आयुष्य प्राप्त होता हैं ? उसे आप बतलायें |
भगवान श्रीकृष्ण बोले– राजन ! आपने बहुत उत्तम बात पूछी हैं | इन फलों को देनेवाले सारस्वतव्रत का विधान आप सुने | इस व्रत के कीर्तनमात्र से भी भगवती सरस्वती प्रसन्न हो जाती है | इस व्रत को वत्सरारम्भ में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को आदित्यवार से प्रारम्भ करना चाहिये | इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर गंध, श्वेत माला, शुक्ल, अक्षत और श्वेत वस्रादि उपचारों से, वीणा, अक्षमाला, कमंडलु तथा पुस्तक धारण की हुई एवं सभी अलंकारों से अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन करे | फिर हाथ जोडकर इन मंत्रो से प्रार्थना करे –
यथा तु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामह: |
त्वां परित्यज्य नो तिष्ठेत तथा भव वरप्रदा ||
वेदशास्त्राणि सर्वाणि नृत्यगीतादिकं च यत |
वाहितं यत त्वया देवि तथा में सन्तु सिद्धय: ||
लक्ष्मीमेंधा वरा रिष्टिगौरी तुष्टि: प्रभा मति : |
एताभि: पाहि तनुभिरष्टभिमाँ सरस्वति || ( उत्तरपर्व ३५/७-९)
‘देवि ! जिसप्रकार लोकपितामह ब्रह्मा आपका परित्यागकर कभी अलग नहीं रहते, उसीप्रकार आप हमे भी वर दीजिये कि हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से वियोग न हो | हे देवि ! वेदादि सम्पूर्ण शास्त्र तथा नृत्य-गीतादि जो भी विद्याएँ हैं, वे सभी आपके अधिष्ठान में ही रहती है, वे सभी मुझे प्राप्त हों | हे भगवती सरस्वती देवि ! आप अपनी-लक्ष्मी, मेधा, वरा, रिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा तथा मति – इन आठ मूर्तियों के द्वारा मेरी रक्षा करें |’
इस विधि से प्रार्थनाकर मौन होकर भोजन करे | प्रत्येक मासके शुक्ल पक्ष की पंचमी को सुवासिनी स्त्रियों का भी पूजन करे और उन्हें तिल तथा चावल, घृतपात्र, दुग्ध तथा सुवर्ण प्रदान करे और देते समय ‘गायत्री प्रीयताम’ ऐसा उच्चारण करे | सायंकाल मौन रहे | इसतरह वर्षभर व्रत करे | व्रत की समाप्तिपर ब्राह्मण को भोजन के लिये पूर्णपात्र में चावल भरकर प्रदान करे | साथ ही दो श्वेत वस्त्र, सवत्सा गौ, चंदन आदि भी दे | देवी को निवेदित किये गये वितान, घंटा, अन्न आदि पदार्थ भी ब्राह्मण को दान कर दे | पूज्य गुरु का भी वस्त्र, माल्य तथा धन-धान्य से पूजन करे | इस विधि से जो पुरुष सारस्वत व्रत करता हैं, वह विद्वान, धनवान और मधुर कंठवाला होता है | भगवती सरस्वती की कृपा से वह वेदव्यास के समान कवि हो जाता है | नारी भी यदि इस व्रत का पालन करे तो उसे भी पूर्वोक्त फल प्राप्त होता है ||