भगवान कार्तिकेय तथा उनके षष्ठी – व्रत की महिमा
सुमन्तु मुनि बोले – राजन ! भाद्रपद मासकी षष्ठी तिथि बहुत उत्तम तिथि है, यह सभी पापों का हरण करनेवाली, पूण्य प्रदान करनेवाली तथा सभी कल्याण-मंगलों को देनेवाली है | यह तिथि कार्तिकेय को अतिशय प्रिय है | इस दिन किया हुआ स्नान, दान आदि सत्कर्म अक्षय होता है | तो दक्षिण दिशा (कुमारिका-क्षेत्र) में निवास करनेवाले कुमार कार्तिकेय का इस तिथि को दर्शन करते हैं, वे ब्रह्महत्या आदि पापोंसे मुक्त हो जाते हैं, इसलिये इस तिथि में भगवान कार्तिकेय का अवश्य दर्शन करना चाहिये | भक्तिपूर्वक कार्तिकेय का पूजन करने से मानव मनोवांछित फल प्राप्त करता है और अन्तमें इन्द्रलोक में निवास करता हैं | ईंट, पत्थर, काष्ठ आदि के द्वारा श्रद्धापूर्वक कार्तिकेय का मन्दिर बनानेवाला पुरुष स्वर्ण के विमान में बैठकर कार्तिकेय के लोक में जाता हैं | इनके मंदिर पर ध्वजा चढाने तथा झाड़ू-पोंछा (मार्जन) आदि करनेसे रुद्रलोक प्राप्त होता है | चंद्रन, अगर, कपूर आदि से कार्तिकेय की पूजा करनेपर हाथी, घोडा आदि वाहनों का स्वामी होता है और सेनापतित्व भी प्राप्त होता हैं | राजाओं को कार्तिकेय की अवश्य ही आराधना करनी चाहिये | जो राजा कृत्तिकाओं के पुत्र भगवान कार्तिकेय की आराधना कर युद्ध के लिये प्रस्थान करता हैं वह देवराज इन्द्र की तरह अपने शत्रुओं को परास्त कर देता है | कार्तिकेय की चंपक आदि विविध पुष्पों से पूजा करनेवाला व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता हैं और शिवलोक को प्राप्त करता हैं | इस भाद्रपद मास की षष्ठी तेल का सेवन नहीं करना चाहिये | षष्ठी भाद्रपद तिथिको व्रत एवं पूजनकर रात्रि में भोजन करनेवाला व्यक्ति सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो कार्तिकेय के लोक में निवास करता हैं | जो व्यक्ति कुमारिका क्षेत्र में स्थित भगवान कार्तिकेय का दर्शन एवं भक्तिपूर्वक उनका पूजन करता हैं, वह अखंड शांति प्राप्त करता हैं |