सिद्धार्थ-सप्तमी- व्रत के उद्यापन की विधि
ब्रह्माजी बोले – याज्ञवल्क्य ! सिद्धार्थ सप्तमी के व्रत के अनन्तर दुसरे दिन स्नान-पूजन-जप तथा हवन आदि करके भोजक, पुराणवेत्ता और वेद-पारंगत ब्राह्मणों को भोजन कराकर लाल वस्त्र, दूध देनेवाली गाय, उत्तम भोजन तथा जो-जो पदार्थ अपने को प्रिय हो, वे सब मध्यान्हकाल में भोजको को दान देने चाहिये | यदि भोजक न प्राप्त हो सकें तो पौराणिक को और पौराणिक ण मिल सके तो सामवेद जाननेवाले मन्त्रविद ब्राह्मणको वे सभी वस्तुएँ देनी चाहिये | मुने ! यह सिद्धार्थ सप्तमी के उद्यापन की संक्षिप्त विधि है | इसप्रकार भक्तिपूर्वक सात सप्तमी का व्रत करनेसे अनंत सुख की प्राप्ति होती है और दस अश्वमेध-यज्ञ का फल प्राप्त होता है | इस व्रत से सभी कार्य सिद्ध हो जाते है | गरुड़ को देखकर सर्प आदि की तरह कुष्ठ आदि सभी रोग इसके अनुष्ठान से दूर भागते है | व्रत-नियम तथा तप करके सात सप्तमी को व्रत करनेसे मनुष्य विद्या, धन, पुत्र, भाग्य, आरोग्य और धर्म को तथा अंत समय में सूर्यलोक को प्राप्त कर लेता है | इस सप्तमी व्रत की विधि का जो श्रवण करता है अथवा उसे पढ़ता है, वह भी सूर्यनारायण में लीन हो जाता है | देवता और मुनि भी इस व्रत के माहात्म्य को सुनकर सूर्यनारायण के भक्त हो गए हैं | जो पुरुष इस आख्यान का स्वयं श्रवण करता है अथवा दुसरे को सुनाता हैं तो वे दोनों सूर्यलोक को जाते है | रोगी यदि इसका श्रवण करे तो रोगमुक्त हो जाता है | इस व्रतकी जिज्ञासा रखनेवाला भक्त अभिलषित इच्छाओं को प्राप्त करता है और सूर्यलोक को जाता है | यदु इस आख्यान को पढकर यात्रा की जाय तो मार्ग में विघ्न नहीं आटे और यात्रा सफल होती है | जो कोई भी जिस पदार्थ की कामना करता है, वह उसे निश्चित प्राप्त कर लेता है | गर्भिणी स्त्री इस आख्यान को सुने तो वह सुखपूर्वक पुत्र को जन्म देती है. बंध्या सुने तो संतान प्राप्त करती है | याज्ञवल्क्य ! यह सब कथा सूर्यनारायण ने मुझसे कही थी और मैंने आपको सुना दी और अब आप भी भक्तिपूर्वक सूर्यनारायण की आराधना करें, जिससे सभी पातक नष्ट हो जायँ | उदित होते ही जो अपनी किरणों से संसार का अंधकार दूरकर प्रकाश फैलाते हैं, वे द्वादशात्मा सूर्यनारायण ही जगत के माता-पिता तथा गुरु हैं, अदिति-पुत्र भगवान् सूर्य आपपर प्रसन्न हों |