विनायक – पूजा का माहात्म्य
शतानीक ने कहा – मुने ! अब आप मुझे भगवान गणेश की आराधना के विषय में बतलाये |
सुमन्तु मुनि बोले – राजन ! भगवान गणेश की आराधना में किसी तिथि, नक्षत्र या उपवासादि की अपेक्षा नहीं होती | जिस किसी भी दिन श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान गणेश की पूजा की जाय तो वह अभीष्ट फलों को देनेवाली होती है | कामना-भेद से अलग-अलग वस्तुओं से गणपति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं | ‘महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति: प्रचोदयात् |’ – गणेश-गायत्री है | इसका जप करना चाहिये |
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को उपवास कर जो भगवान गणेश का पूजन करता हैं, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं और सभी अनिष्ट दूर हो जाते हैं | श्रीगणेशजी के अनुकूल होने सभी जगत अनुकूल हो जाता हैं | जिसपर एकदन्त भगवान गणपति संतुष्ट होते हैं, उसपर देवता, पितर, मनुष्य आदि सभी प्रसन्न रहते हैं | (एकद्न्ते जगन्नाथे गणेशे त्रुष्टिमागते | पितृदेवगनुश्याद्या सर्वे तुष्यन्ति भारत || )
इसलिये सम्पूर्ण विघ्नों को निवृत्त करने के लिये श्रद्धा-भक्तिपूर्वक गणेशजी की आराधना करनी चाहिये |